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________________ भगवती कवितामा अनगार और प्रकाशित पुद्गल २३५५ ३ उत्तर - गोयमा ! जाओ हमाओ चंदिम-सूरियाणं देवानं विमाणेहिंतो लेस्माओ बहिया अभिस्मिडाओ ताओ ओभासंति प्रभासेंति एवं एएणं गोयमा ! ते सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति ४ । कठिन शब्दार्थ - अभिणिस्सडाओ- बाहर निकली हुई । भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! अपनी कर्म-लेश्या को नहीं जानने-देखने वाला भावितात्मा अनगार, सरूपी ( सशरीरी) और कर्म-लेश्या सहित जीव को जानता देखता है ? मुत्र - १० १ उत्तर- हां, गौतम ! भावितात्मा अनगार, जो अपनी कर्म सम्बन्धी लेश्या को नहीं जानता नहीं देखता, वह सरूपी कर्म-लेश्या वाले जीव को जानतादेखता है। २ प्रश्न - हे भगवन् ! सरूपी ( वर्ण आदि युक्त) सकर्मलेश्य ( कर्म के योग्य कृष्णादि लेश्या के) पुद्गल-स्कन्ध प्रकाशित होते हैं ? २ उत्तर- हां, गौतम ! वे पुद्गल-स्कन्ध प्रकाशित होते हैं । ३ प्रश्न - हे भगवन् ! वे सरूपी कर्म-लेश्य पुद्गल कौन से हैं जो प्रकाशित होते हैं यावत् प्रभासित होते हैं ? ३ उत्तर - हे गौतम ! चन्द्र और सूर्य के विमानों से बाहर निकले हुए प्रकाशित पुद्गल प्रकाशित होते हैं, यावत् प्रभासित होते हैं । इस प्रकार हे गौतम ! ये सभी सरूपी कर्म योग्य लेश्या वाले पुद्गल प्रकाशित होते हैं यावत् प्रभासित होते हैं । विवेचन - तप-संयम की भावना से जिसका अन्तःकरण सुवासित है, वह 'भावितात्मा अनगार' कहलाता है । वह भावितात्मा अनगार छद्मस्थ ( अवधिज्ञान आदि रहित ) होने ज्ञानावरणीयादि कर्म के योग्य अथवा कर्म सम्बन्धी कृष्णादि लेश्या को नहीं जान-देख सकता । क्योंकि कर्म-द्रव्य और लेश्या द्रव्य अति सूक्ष्म होते हैं । वे छद्मस्थ के लिए अगोचर है । परन्तु वह कर्म और लेश्या युक्त शरीरधारी जीव को जानता देखता है। क्योंकि शरीर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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