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भगवती सूत्र-श. १४ उ. ५ श्रमण-निग्रंथ का मुख्य
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कठिन शब्दार्थ-अविरुग्गयं-तत्काल उदित, जासुमणाकुसुमपुंजप्पगासं-जामुमण नामक वृक्ष के फूलों के पुंज समान, किमियं-क्या है ?
भावार्थ-१० उस काल उस समय में भगवान् गौतम स्वामी ने तत्काल उदित हुए और जासुमण वृक्ष के फूलों के पुंज समान लाल ऐसे बालसूर्य को देखा । सूर्य को देख कर श्रद्धावाले यावत् जिनको प्रश्न का कुतूहल उत्पन्न हुआ है, ऐसे भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के निकट आकर यावत् वन्दना-नमस्कार कर इस प्रकार पूछा
प्रश्न-हे भगवन् ! 'सूर्य' क्या है और सूर्य का अर्थ क्या है ? उत्तर-हे गौतम ! 'सूर्य' शुभ पदार्थ है और सूर्य का अर्थ भी शुभ है । ११ प्रश्न-हे भगवन् ! 'सूर्य' क्या है और 'सूर्य को प्रभा' क्या है ? ..
११ उत्तर-हे गौतम ! पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिये । इसी प्रकार छाया (प्रतिबिम्ब) और लेश्या (प्रकाश का समूह) के विषय में भी जानना चाहिये।
विवेचन-'सूर्य' शब्द का अन्वर्थ है-शुभ वस्तु । क्योंकि सूर्य विमानवर्ती पृथ्वीकायिक जीवों क आतप नामकर्म की पुण्य-प्रकृति का उदय है और लोक में भी सूर्य प्रशस्त (उत्तम) माना गया है तथा वह ज्योतिषी देवों का इन्द्र है । इन कारणों से 'सूर्य' शुभ है । इसका शब्दार्थ भी-'शूरों के लिये' है (क्षमा-शूर, तप-शूर दान-शूर और युद्ध-शूर आदि शूरवीरों के लिये) वह हितकारी है । इसलिये 'मूर्य' शब्द का अर्थ भी शुभ है । इन कारणों से 'सूर्य' का शब्दार्थ भी शुभ है।
श्रमण-निर्ग्रन्थ का सुख
१२ प्रश्न-जे इमे भंते ! अजत्ताए समणा णिग्गंथा विहरति, एए णं कस्स तेयलेस्सं वीइवयंति ?
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