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भगवती सूत्र-श. १४ उ. ८ जागा देवों के भेद और आयाम
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विवेचन--जो दूसरों को पीड़ा नहीं पहुंचाते, उन्हें 'अव्यावाध देव' कहते हैं । लोकान्तिक दव नौ कहे हैं। यथा--, मारम्बत २ आदित्य : वन्हि ४ वरुण ५ गदंतोय ६ तृपित ५ अव्याबाध ८ आग्नेय ( अग्न्यर्चा) और ५ अरिष्ट (रिष्ठ) । इन नौ प्रकार के लोकान्तिक देवों में मे जो सातवां अव्यावाध भेद है, वे ही अव्यावाध देव कहलाते हैं। ये किमी प्रम्प के अवयव का छेदन करके भी उम कुछ भी पीड़ा नहीं होने देते । इस प्रकार की सूक्ष्मता पूर्वक य नाट्य विधि आदि बताते हैं ।
अपनी इच्छानुमार म्वतन्त्र प्रवृत्ति करने वाले एव निरन्तर क्रीड़ा में रत रहने वाले देव, 'जम्भक' कहलाते हैं। ये अति प्रसन्न चिन रहते हैं और मैथुन मेवन की प्रवृत्ति में आसक्त बने रहते हैं । ये तिच्छीलोक में रहते है। जिन मनुष्यों पर य प्रसन्न हो जाते हैं, उन्हें धन-सम्पत्ति आदि मे मखी कर देते हैं और जिन पर ये कुपित हो जाते हैं, उनको कई प्रकार से हानि पहुंचाने हैं। इनके दम भेद हैं । यथा-(१) अन्न जम्भक-भोजन के परिमाण को बढ़ा-घटा दने, उसे सरम या नौरस कर देने आदि की शक्ति वाले 'अन्नजम्भक' कहलाते हैं (२) पान जम्भक-पानी को घटा-बढ़ा देने वाले देव (३) वस्त्र जम्भक-वस्त्र को घटाने-बहाने आदि शक्ति.वाले देव (४) लयन जम्भक-घर, मकान आदि की रक्षा आदि करने वाले देव ( ५) आयन जम्भक-शय्या आदि की रक्षा आदि करने वाले देव (६)Aष्प जम्भक-फूलों की रक्षा आदि करने वाले देव (७) फल जृम्भक-फलों की रक्षा आदि करने वाले देव (८) पुष्प-फल जम्भक-फलों और फलों आदि की रक्षा करने वाले देव । कहीं-कहीं इसके स्थान में 'मन्त्र जम्भक' पाठ भी मिलता है (९) विद्या ज़म्भक-विद्याओं की रक्षा आदि करने वाले देव और (१०) अव्यक्त जृम्भक-सामान्य रूप से सभी पदार्थों की रक्षा आदि करने वाले देव । कहीं-कहीं इसके स्थान में 'अधिपति जम्भक' पाठ भी मिलता है।
__ पांच महाविदह, पांच भरत और पांच एरवत-इन पन्द्रह क्षेत्रों में एक सो सित्तर दीर्घ वैताढ्य पर्वत हैं । प्रत्येक क्षेत्र में एक-एक पर्वत होता है। महाविदेह की प्रत्येक विजयं में भी एक-एक पर्वत होता है ।
देवकुरु में शीतोदा नदा के दोनों किनारों पर चित्रकूट विचित्रकूट पर्वत हैं। उत्तरकुरु में सीता नदी के दोनों किनारों पर यमक पर्वत हैं । उत्तरकुरु में शीता नदी सम्बन्धी पांच नीलवान् आदि द्रह हैं। उनके पूर्व और पश्चिम दोनों तटों पर दस-दस काञ्चन पवंत है । इस प्रकार उनरकुरु में एक मी काञ्चन पर्वत हैं। इसी प्रकार देवकुरु में
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