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भगवती सूत्र-श. १४. उ. , जम्भन देवों के भेद और आवाम
२२ उत्तर-गोयमा ! एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता । 8 मेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ
॥ चोदसमसए अट्टओ उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-पाउणेज्जा--प्राप्त करे। भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जम्भक (स्वच्छन्दाचारी) देव हैं ? १९ उत्तर-हाँ, गौतम ! हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! वे जृम्भक देव क्यों कहलाते हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! जम्भक देव, सदा प्रमोदी, अत्यन्त क्रीडाशील, कन्दर्प में रत और मैथुन सेवन के स्वभाव वाले होते हैं। जो पुरुष उन देवों को कुपित हुए देखता है, वह पुरुष महान् अपयश को प्राप्त करता है, तथा जो पुरुष उन देवों को तुष्ट (प्रसन्न) हुए देखता है, वह महायश को प्राप्त करता है । इस कारण हे गौतम ! वे 'जम्भक देव' कहलाते हैं।
२० प्रश्न-हे भगवन् ! जम्भक देव, कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
२० उत्तर-हे गौतम ! दस प्रकार के कहे गये हैं। यथा-१ अन्न जम्भक, २-पान जम्भक, ३ वस्त्र जम्भक, ४ लयन ज़म्भक, ५ शयन जम्भक, ६ पुष्प जम्भक, ७ फल जृम्भक, ८ पुष्पफल जम्भक, ९ विद्या जम्भक और १० अव्यक्त
जम्भक।
__ २१ प्रश्न-हे भगवन् ! जम्भक देव कहां रहते हैं ?
२१ उत्तर-हे गौतम ! जम्भक देव, सभी दीर्घ (लम्बे) वैताढ्य पर्वतों में, चित्रविचित्र यमक और समक पर्वतों में तथा काञ्चन पर्वतों में रहते हैं ? . २२ प्रश्न-हे भगवन् ! जम्भक देवों की स्थिति कितने काल को कही गई है?
२२ उत्तर-हे गौतम! जम्भक देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। :
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