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________________ भगवती सूत्र-ग. १४ उ. ८ अम्बड़ परिव्राजक . उत्तर-हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा, यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल तथा दावानल को ज्वाला से जली हुई यह शाल-यष्टिका, काल-मास में काल करके कहां जाएगी, कहाँ उत्पन्न होगी ? । १३ उत्तर-हे गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में विन्ध्याचल की तलहटी स्थित माहेश्वरी नगरी में शाल्मली वृक्ष रूप से उत्पन्न होगी । वहाँ वह अचित, वन्दित और पूजित होगी, यावत् उसका चबूतरा लीपा-पोता हुआ होगा । इस प्रकार वह पूजनीय होगी। प्रश्न-हे भगवन् ! वह काल करके कहां जाएगी, कहाँ उत्पन्न होगी? उत्तर-हे गौतम ! पूर्वोक्त शालवृक्ष के समान कहना चाहिये, यावत् वह सर्व दुःखों का अन्त करेगी। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तषा से व्याकुल और दावानल की ज्वाला से जली हुई यह उदुम्बर-यष्टिका (उम्बर वृक्ष की शाखा) काल करके कहां जाएगी, कहाँ उत्पन्न होगी ? १४ उत्तर-हे गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में पाटलीपुत्र नाम के नगर में पाटली वृक्षपने उत्पन्न होगी। वहाँ यह अचित, वन्दित यावत् पूजनीय होगी। प्रश्न-हे भगवन् ! वहाँ से काल कर, वह कहाँ जाएगी, कहाँ उत्पन्न होगी? उत्तर-पूर्वोक्त यावत् वह समस्त दुःखों का अन्त करेगी। विवेचन-उपर्युक्त शालादि वृक्षों में अनेक जीव होते हैं । तथापि प्रथम जीव की अपेक्षा ये तीन अम्बड़ परिव्राजक १५-तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिवायगस्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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