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________________ २३४६ भविस्स | भगवती सूत्र - श. १४८ का परभव प्रश्न-से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उब्वद्वित्ता ? 2 उत्तर - सेसं जहा सालस्वस्त जाव अंतं काहिति । १४ प्रश्न - एस णं भंते ! उंबरलडिया उण्हाभिहया ३ कालमाने कालं किचा जाव कहिं उववजिहिति ? १४ उत्तर - गोयमा ! इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पाडलि पुत्ते यरे पाडलिरुक्खत्ताए पञ्चायाहिति । से णं तत्थ अच्चियवंद जाव भविस्म | प्रश्न- मे णं भंते ! अनंतरं उब्वद्वित्ता० ? उत्तर - सेस तं चैव जाव अंतं काहिति । कठिन शब्दार्थ - उण्हाभिहए - गर्मी में पीड़ित सच्चोवाए - सत्यावपात ( जिसकी सेवा करना मफल है ऐमा), लाउलोइयमहिए - लीप- पोत कर सत्कारित किया हुआ । Jain Education International भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल, दावानल की ज्वाला से जला हुआ यह शाल वृक्ष, काल-मास में ( मरण के समय में ) काल करके कहां जायगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? १२ उत्तर - हे गौतम ! इसी राजगृह नगर में फिर शालवृक्षपने उत्पन्न होगा । वहाँ वह अचित, वन्दित, पूजित, सत्कृत, सम्मानित और दिव्य (प्रधान) होगा । तथा वह सत्य, सत्यावपात, सन्निहितप्रातिहार्य (पूर्वभव सम्बन्धी देवों ने जिसका प्रतिहारपन्न - सामीप्य किया है) और जिसका पीठ ( चबूतरा ) लोपी हुई और पोती हुई तथा पूजनीय होगा । प्रश्न - हे भगवन् ! वह शालवृक्ष वहाँ से मरकर कहाँ जायगा और कहाँ उत्पन्न होगा ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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