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भविस्स |
भगवती सूत्र - श. १४८ का परभव
प्रश्न-से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उब्वद्वित्ता ?
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उत्तर - सेसं जहा सालस्वस्त जाव अंतं काहिति । १४ प्रश्न - एस णं भंते ! उंबरलडिया उण्हाभिहया ३ कालमाने कालं किचा जाव कहिं उववजिहिति ?
१४ उत्तर - गोयमा ! इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पाडलि पुत्ते यरे पाडलिरुक्खत्ताए पञ्चायाहिति । से णं तत्थ अच्चियवंद जाव भविस्म |
प्रश्न- मे णं भंते ! अनंतरं उब्वद्वित्ता० ?
उत्तर - सेस तं चैव जाव अंतं काहिति ।
कठिन शब्दार्थ - उण्हाभिहए - गर्मी में पीड़ित सच्चोवाए - सत्यावपात ( जिसकी सेवा करना मफल है ऐमा), लाउलोइयमहिए - लीप- पोत कर सत्कारित किया हुआ ।
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भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल, दावानल की ज्वाला से जला हुआ यह शाल वृक्ष, काल-मास में ( मरण के समय में ) काल करके कहां जायगा, कहाँ उत्पन्न होगा ?
१२ उत्तर - हे गौतम ! इसी राजगृह नगर में फिर शालवृक्षपने उत्पन्न होगा । वहाँ वह अचित, वन्दित, पूजित, सत्कृत, सम्मानित और दिव्य (प्रधान) होगा । तथा वह सत्य, सत्यावपात, सन्निहितप्रातिहार्य (पूर्वभव सम्बन्धी देवों ने जिसका प्रतिहारपन्न - सामीप्य किया है) और जिसका पीठ ( चबूतरा ) लोपी हुई और पोती हुई तथा पूजनीय होगा ।
प्रश्न - हे भगवन् ! वह शालवृक्ष वहाँ से मरकर कहाँ जायगा और कहाँ उत्पन्न होगा ?
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