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२३४॥
भगवता मूत्र-श. १४ उ. ८ पश्यिया और देवटाको का अन्तर
९ उत्तर-पूर्ववत् महाशुक्र और सहस्रार कल्प का अबाधान्तर भी इसी प्रकार जानना चाहिए और सहस्रार और आणत-प्राणत कल्पों का, आणत प्राणत कल्प और आरण-अच्युत कल्पों का, आरण-अच्युत और अवेयक विमानों का तथा ग्रेवेयक विमानों से अनुत्तर विमानों का अबाधान्तर भी पूर्ववत् जानना चाहिए।
१० प्रश्न-अणुत्तरविमाणाणं भंते ! ईसिंपन्भाराए य पुढवीए .. केवइए-पुग्छ।
१० उत्तर-गोयमा ! दुवालसजोयणे अवाहाए अंतरे पण्णत्ते ।
११ प्रश्न-ईमिपभाराए णं भंते ! पुढवीए अलोगम्स य केवइए अवाहाए-पुच्छा।
११ उत्तर-गोयमा ! देसूणं जोयणं अवाहाए अंतर पण्णत्ते ।
भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन् ! अनुत्तर विमानों का और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी का अबाधान्तर कितना कहा गया ?
१० उत्तर-हे गौतम ! बारह योजन का अबाधान्तर कहा गया।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी और अलोक का अवाधान्तर कितना कहा गया ?
११ उत्तर-हे गौतम ! देशोन योजन (कुछ कम एक योजन) का अबाधान्तर कहा गया ।
विवेचन-यहाँ जो अन्तर बतलाया गया है, वह प्रमाणांगल से समझना चाहिये। ईपत्प्रागभारा पृथ्वी और अलोक के बीच में जो देशोन योजन का अन्तर बतलाया, वह उत्मेधांगल प्रमाण से समझना चाहिये । क्योंकि उम योजन के उपरितन कोस के छठे भाग में सिद्धों की अवगाहना कही गई है, जो ३३३ धनुष और धनुप के विभाग प्रमाण है । यह अवगाहना उत्सेधांगुल योजन मानने से ही संगत हो सकती है ।
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