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ग. १४ उ. ७ लव-सप्तम देव
आहार में गद्ध होता है, पीछे मारणान्तिक समुद्घात करता है । उससे निवृत्त होने के बाद परिणामों में प्रशान्तता आ जाती है । इमलिये वह आहार में मूर्छा और गद्धि रहित बन जाता है।
टीकाकार ने तो उपयुक्त Fप मे अर्थ मंगति की है । धारणा के अनमार इसकी अर्थ-संगति इस प्रकार है कि संथारा करके काल करने वाला अनगार, जब काल करके देवलोक में उत्पन्न होता है, तब उत्पन्न होते ही वह पहले आमक्ति और गृद्धिपूर्वक आहार ग्रहण करता है, फिर पीछे वह आसक्ति और गृद्धि रहित होकर आहार करता है।
लव-सप्तम देव
११ प्रश्न-अत्यि णं भंते ! लवसत्तमा देवा, लवसत्तमा देवा ? ११ उत्तर-हंता अस्थि ।
प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-' लवसत्तमा देवा,' लवसत्तमा देवा ? ___उत्तर-गोयमा ! से जहाणामए केइ पुरिसे तरुणे जाव णिउणसिप्पोवगए सालीण वा, वीहीण वा, गोधूमाण वा, जवाण वा, जवजवाण वा, पक्काणं, परियाताणं, हरियाणं, हरियकंडाणं तिखेणं णवपजणएणं असिअएणं पडिसाहरिया पडिसाहरिया पडिसंखिविया पडिसंखिविया जाव इणामेव इणामेव त्ति कटु सत्त लवए लुएजा, जइ णं गोयमा ! तेसिं देवाणं एवइयं कालं आउए पहुप्पए तो णं ते देवा तेणं चेव भवग्गहणेणं सिझंता जाव अंतं करेंता, मे तेणटेणं जाव 'लवसत्तमा देवा,' लवसत्तमा देवा ?
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