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भगवती सूत्र-ग. १४ उ. ७ लव-सप्तम देव
१२ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! 'अणुत्तरोववाइया देवा' २ ? १२ उत्तर-हंता अस्थि । प्रश्न-मे केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'अणुत्तरोववाइया देवा' ?
उत्तर-गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं अणुत्तरा सद्दा, जाव अणुत्तरा फासा, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जाव 'अणुत्तरोववाइया देवा' २।। ___ १३ प्रश्न-अणुतरोववाइया णं भंते ! देवा णं केवइएणं कम्मावसे. मेणं अणुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववण्णा ? ____ १३ उत्तर-गोयमा ! जावइयं छटुभत्तिए समणे णिग्गंथे कम्म णिजरेइ एवइएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववाइया देवा देवत्ताए उपवण्णा ।
* मेवं भंते ! सेवं भंते ! ति -
॥ चोदसमसए सत्तमो उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-वोहीण-ब्रीहि (जौ), पहुप्पए-अधिक प्राप्त होता। भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! 'लवसत्तम' देव हैं ? ११ उत्तर-हाँ, गौतम ! हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! उन्हें 'लवसत्तम देव' क्यों कहते हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! जैसे कोई युवक पुरुष यावत् जो शिल्पकला का ज्ञाता हो, निपुण हो, वह पके हुए, काटने योग्य, पीले पड़े हुए और पीलीनाल (डण्डी) वाले शाली, बीहि, गेहूँ, जौ और जवजव (एक प्रकार का धान्य विशेष) को हाथ से
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