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________________ २३३६ भगवती सूत्र - श. १४ उ ७ आहारादि में मूच्छित अमूच्छित अनगार के नीचे का भाग । हीन हो, उसे 'सादि (३) सादि संस्थान - यहाँ 'मादि' शब्द का अर्थ है- नाभि जिस संस्थान में नाभि के नीचे का भाग पूर्ण हो और ऊपर का भाग संस्थान' कहते हैं । "कहीं-कहीं मादि संस्थान के स्थान पर 'माची संस्थान भी मिलता है । माची 'सेमल' ( शाल्मली ) वृक्ष को कहते हैं । 'शाल्मली' वृक्ष का धड़ जैसा पुष्ट होता है, वैसा ऊपर का भाग नहीं होता। इसी प्रकार जिस शरीर में नाभि के नीचे का भाग परिपूर्ण होता है और ऊपर का भाग हीन होता है, वह साची संस्थान है । (४) कुब्ज संस्थान - जिस शरीर में हाथ, पैर, सिर गर्दन, आदि अवयव ठीक हों, परन्तु छाती, पेट और पीठ आदि टेढ़े मेढ़े हों, उसे 'कुब्ज संस्थान' कहते हैं । ( ५ ) वामन संस्थान - जिस शरीर में छाती, पीठ, पेट आदि अवयव पूर्ण हों, परन्तु हाथ, पैर आदि अवयव छोटे हों, उसे 'वामन संस्थान' कहते हैं । कहीं-कहीं कुब्ज संस्थान और वामन संस्थान के उपरोक्त लक्षण ही व्यत्यय ( उलटे ) करके दिये हैं । (६) हुण्डक संस्थान - जिस शरीर में समस्त अवयव बेढब हों, अर्थात् एक भी अवयव सामुद्रिक शास्त्र प्रमाण के अनुसार न हो, उसे 'हुण्डक संस्थान' कहते हैं । ऊपर अजीव के परिमण्डल, वृत्त आदि पाँच संस्थान बतलाये गये हैं । इनके अतिरिक्त एक छठा संस्थान और भी है। उसका नाम है -अनित्यस्थ । विचित्र अथवा अनियत आकार - जो परिमण्डलादि से बिल्कुल विलक्षण हो, उसे 'अनित्थंस्थ' संस्थान कहते हैं । वनस्पतिकाय और पुद्गलों में अनियत आकार होने से वे 'अनित्थंस्थ' संस्थान वाले हैं। किसी प्रकार का आकार न होने से सिद्ध जीव भी 'अनित्थंस्थ' संस्थान वाले कहलाते हैं । आहारादि में मूर्च्छित-अमूर्च्छित अनगार १० प्रश्न - भत्तपञ्चक्खायए णं भंते ! अणगारे मुच्छिए जाव अज्झोववणे आहारमाहारेड़, अहे णं वीससाए कालं करेइ, तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे जाव अणज्झोववण्णे आहारमाहारेड ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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