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________________ भगवती सूत्र श. १४ उ ७ भगवान् गौतम का भवांतरीय संबंध सेसमणाणत्ता भविसामो । २ प्रश्न - जह णं भंते ! वयं एयमहं जाणामो पासामो तहा णं अणुत्तरोववाइया वि देवा एयम जाणंति पासंति ? २ उत्तर - हंता गोयमा ! जहा णं वयं एयमहं जाणामो, पासामो तहा अणुत्तरोववाइया वि देवा एयमहं जाणंति पासंति । प्रश्न-से केणट्टेणं जाव पासंति ? Jain Education International २३०३ उत्तर - गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं अनंताओ मणोदव्ववग्गणाओ लद्वाओ पत्ताओ अभिसमण्णागयाओ भवंति से तेणणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव पासंति । कठिन शब्दार्थ - आमंतेत्ता - आमंत्रित ( बुला ) कर । भावार्थ- १ - राजगृह नगर में यावत् परिषद् धर्मोपदेश श्रवण कर लौट गई । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने -'हे गौतम !' इस प्रकार भगवान् गौतम को सम्बोधित करके इस प्रकार कहा - " हे गौतम! तू मेरे साथ चिरसंश्लिष्ट है ( मेरे साथ चिरकाल से स्नेह से बद्ध है) हे गौतम ! तू मेरे साथ चिरसंस्तुत है ( लम्बे काल के स्नेह से तूने मेरी प्रशंसा की है) हे गौतम ! तू मेरे साथ चिर परिचित है ( तेरा मेरे साथ लम्बे समय से परिचय रहा है) हे गौतम! तू मेरे साथ चिर सेवित या चिर प्रीत है ( तूने लम्बे काल से मेरी सेवा की है अथवा मेरे साथ प्रीति रखी है) हे गौतम ! तू मेरे साथ चिरानुगत है ( चिरकाल से तूने मेरा अनुसरण किया है) हे गौतम! तू मेरे साथ चिरानुबृत्ति है ( तेरा मेरे साथ चिरकाल से अनुकूल वर्ताव रहा है) हे गौतम ! इससे ( पूर्व के) अनन्तर देव भव में और उससे अनन्तर मनुष्य-भव में तेरा मेरे साथ संबंध था। अधिक क्या कहा जाय, इस भव में मृत्यु के पश्चात् इस शरीर के छूट For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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