SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र -श. १४ उ भगवान् और गौतम का भवान्तरीय संबंध और सहस्रार में ८०० योजन, आनत और प्राणत, आरण और अच्युत में प्रासाद नौ मो योजन ऊँचे होते हैं और उसका विस्तार साढ़े चार सौ योजन होता है। अच्युत देवलोक में अच्युतेन्द्र दस हजार सामानिक देवों के साथ यावत् विचरता है। यहां इतनी विशेषता है। कि सनत्कुमार आदि इन्द्र, सामानिकादि देवों के परिवार सहित चक्र के आकार वाले स्थान में जाते हैं । क्योंकि उनके समक्ष स्पर्श आदि विषयों का उपभोग करना अविरुद्ध है । शन्द्र और ईशानेन्द्र वहां परिवार सहित नहीं जाते । क्योंकि वे काय-मेवी होने से उनके समक्ष परिचारणा (काया द्वारा विषयोपभोग सेवन ) करना लज्जनीय और अनुचित है । || चौदहवें शतक का छट्टा उद्देशक सम्पूर्ण || २३२६ शतक १४ उद्देशक ७ भगवान् और गौतम का भवान्तरीय संबंध १ - राग जाव परिसा पडिगया । गोयमाई ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतित्ता एवं वयासी - 'चिर संसिडोसि मे गोयमा ! चिरसंधुओसि मे गोयमा ! चिरपरिचिओसि मे गोयमा ! चिरजुसिओसि मे गोयमा ! चिराणुगओसि मे गोयमा ! चिराणुबत्तीस मे गोयमा ! अनंतरं देवलोए अनंतरं माणुस्सए भवे, किं परं ? मरणा कायस्त भैया, इओ चुया दो वि तुल्ला एगट्ठा अवि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy