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२३२८ भगवती सूत्र - १४ उ ७ भगवान् और गौतम का भवान्तरीय सम्बन्ध
जाने पर अपन दोनों तुल्य (एक सरीखे ) और एकार्थ ( एक प्रयोजन वाले अथवा एक सिद्धि क्षेत्र में रहने वाले ) विशेषता रहित और किसी प्रकार के भेदभाव रहित हो जावेंगे ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! जिस प्रकार अपन दोनों इस पूर्वोक्त अर्थ को जानते-देखते हैं, तो क्या अनुत्तरोपपातिक देव भी इस अर्थ को इसी प्रकार जानते-देखते हैं ?
२ उत्तर - हाँ गौतम ! जिस प्रकार अपन दोनों पूर्वोक्त बात को जानतेदेखते हैं, उसी प्रकार अनुत्तरौपपातिक देव भी इस बात को जानते देखते हैं ।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कारण है कि जिस प्रकार अपन दोनों इस बात को जानते-देखते हैं, उसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देव भी जानतेदेखते हैं ?
उत्तर - हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देवों को अवधिज्ञान की लब्धि से मनोद्रव्य की अनन्त वर्गणाएं ज्ञेय रूप से उपलब्ध है, प्राप्त है, अभिसमन्वागत हुई है । इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा गया है कि यावत् अनुत्तरोपपातिक देव जानते देखते हैं ।
विवेचन - केवलज्ञान की प्राप्ति न होने से खिन्न बने हुए गौतम स्वामी को आश्वासन देने के लिये श्रमण भगवान् महावीर स्वामी, गौतम स्वामी के साथ अपना चिरकाल का परिचय बताते हुए कहते हैं कि हे गौतम ! तू खिन्न मत हो । इम शरीर के छूटने पर अपन दोनों एक समान सिद्ध हो जायेंगे ।
भगवान् के कथन से आश्वासन प्राप्त कर गौतम स्वामी ने दूसरा प्रदन किया कि जायेंगे। यह बात आप तो केवल
हे भगवन् ! भविष्य काल में अपन दोनों तुल्य हो ज्ञान से जानते हैं और में आपके कथन मे जानता हूं, किन्तु क्या अनुत्तरोपपातिक देव भी यह बात जानते-देखते हैं ? - यह इस प्रश्न का आशय है । भगवान् ने कहा कि अनुत्तरोपपातिक देव विशिष्ट अवधिज्ञान के द्वारा मनोद्रव्य वर्गणा को जानते-देखते हैं । अयोगी अवस्था में अपन दोनों का निर्वाण गमन का निश्चय करते हैं। इस अपेक्षा से
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