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________________ भगवती सूत्र - श. ९४ उ ५ जीवों का अग्नि प्रवेश उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, क्योंकि उस पर अग्नि रूप शस्त्र असर नहीं करता । जो अविग्रह- गति समापन्नक हैं, वे अग्निकाय के मध्य में होकर नहीं जा सकते ( क्योंकि नरक में बादर अग्नि नहीं होती ) इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि कोई नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा २३१२ सकता । २ प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमार देव अग्नि के मध्य में होकर जा सकते हैं ? २ उत्तर - हे गौतम ! कोई जा सकते हैं और कोई नहीं जा सकते । प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कारण है इसका ? उत्तर - हे गौतम! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-विग्रह गति समापनक और अविग्रह गति समापन्नक । जो विग्रह गति समापन्नक असुरकुमार हैं, वे नैरयिकों के समान हैं यावत् 'उन पर अग्नि-शस्त्र असर नहीं करता । जो अविग्रह गति समापन्नक असुरकुमार हैं, उनमें से कोई अग्नि के मध्य में होकर जा सकता है और कोई नहीं जा सकता । प्रश्न- जो अग्नि के मध्य में जाता है वह जलता है ? उत्तर - यह अर्थ समर्थ नहीं। क्योंकि उस पर अग्नि आदि शस्त्र असर नहीं करता । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि कोई असुरकुमार जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमारों तक कहना चाहिये । एकेन्द्रियों के विषय में नैरयिकों के समान कहना चाहिये । ३ प्रश्न - वेइंदिया णं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं ? ३ उत्तर - जहा असुरकुमारे तहा वेईदिएवि, णवरं - प्रश्न- जेणं वीइवएजा से णं तत्थ झियाएजा ? उत्तर - हंता झियाएजा सेसं तं चैव एवं जाव चउरिदिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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