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भगवती सूत्र - १४ उ. ४ परमाणु की शादवतता
प्रश्न-से केणणं भंते ! एवं बुच्चइ - 'सिय सासए, सिय असा
स ?
उत्तर - गोयमा ! दव्वट्टयाए सासए वण्णपज्जवेहिं, जाव फासपज्जवेहिं असासए, मे तेणद्वेणं जाव सिय सासए, सिय असासए । ६ प्रश्न - परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं चरिमे. अचरिमे ?
,
६ उत्तर - गोयमा ! दव्वादेसेणं, णो चरिमे अचरिमे, खेत्तादेसेणं सिय चरिमे सिय अचरिमे, कालादेसेणं सिय चरिमे सिय अचरिमे, भावादेसेणं सिय चरिमे सिय अचरिमे ।
कठिन शब्दार्थ - दट्टयाए द्रव्य की अपेक्षा, वण्णपज्जवेहि-वर्ण-पर्यायों से, दवादेसे -- द्रव्यादेश से ( द्रव्य की अपेक्षा) चरिमे - अंतिम |
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भावार्थ-५ प्रश्न- हे भगवन् ! परमाणु- पुद्गल शाश्वत है या अशाश्वत ? ५ उत्तर - हे गौतम ! कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत है । प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कारण है इसका ?
उत्तर - हे गौतम ! द्रव्यार्थ रूप से परमाणु-पुद्गल शाश्वत है और वर्णपर्याय यावत् स्पर्श पर्यायों द्वारा अशाश्वत है । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि परमाणु-पुद्गल कथंचित् शाश्वत और कथंचित् अशाश्वत है । ६ प्रश्न - हे भगवन् ! परमाणु- पुद्गल चरम है या अचरम ? ६ उत्तर - हे गौतम! परमाणु- पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा चरम नहीं, अचरम है | क्षेत्रादेश से कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम है । कालादेश से कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम है और भावादेश से भी कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है ।
विवेचन - परमाणु- पुद्गल, द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है, क्योंकि स्कन्ध के साथ मिल जाने पर भी उसका परमाणुत्व नष्ट नहीं होता । उस समय वह 'प्रदेश' शब्द से कहा
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