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भगवती सूत्र-श. १४ उ. ४ परमाणु की शाश्वतता
एवं पड्डुप्पण्णं सासयं समयं, एवं अणागयमणंतं सासयं समयं । ।
कठिन शब्दार्थ-णिज्जिण्णे-निर्जीर्ण (क्षीण) ।
भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! यह जीव अनन्त और शाश्वत अतीत काल में, एक समय में दुःखी, एक समय में अदुःखी (सुखी) तथा एक समय में दुःखी और सुखी था और प्रथम करण (प्रयोग-करण) और विलसा करण द्वारा अनेक भाव वाले और अनेक रूप वाले परिणाम से परिणत हुआ था ? इसके बाद वेदनीय एवं ज्ञानावरणीयादि कर्मों की निर्जरा होने पर जीव, एक भाव वाला और एक रूप वाला था ?
४ उत्तर-हाँ, गौतम ! यह जीव यावत् एक रूप वाला था। इसी प्रकार शाश्वत वर्तमान काल में तथा अनन्त और शाश्वत भविष्यत्काल के विषय में भी कहना चाहिये।
विवेचन-यह प्रत्यक्ष जीव, अनन्त और शाश्वत अतीत काल में, एक समय में दुःखों के कारणों से दुःखी था, एक समय में मुख के हेतुभूत कारणों से मुखी था और एक समय दुःखी और सुखी दोनों था। इस प्रकार अनेक परिणामों में परिणत होकर पुनः किसी समय एक भाव परिणाम में परिणत हो जाता है । एक भाव परिणाम में परिणत होने के पूर्व काल, स्वभावादि कारण-समूह से एवं शुभाशुभ कर्म बंध की हेतुभूत क्रिया से, दुःख-सुखादि रूप अनेक भाव रूप परिणाम से परिणत होता है । फिर दुःखादि अनेक भावों के हेतुभूत वेदनीय कर्म और ज्ञानावरणीयादि कर्मों के क्षीग होने पर स्वाभाविक सुख रूप एक भाव से परिणत होता है । यहाँ जीव के सुखी-दुःखी आदि परिणामों के विषय में भूत, भविष्यत्, वर्तमान-तीनों काल सम्बन्धी प्रश्नोत्तर किये गये हैं।
परमाणु की शाश्वतता
५ प्रश्न-परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सासए, असासए ! ५ उत्तर-गोयमा ! सिय सासए, सिय असासए ।
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