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भगवती सूत्र-श. १४ उ. ४ जीव का दुःप और गुख.
३ प्रश्न-हे भगवन् ! यह स्कन्ध, अनन्त शाश्वत, अतीत-काल में इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ?
३ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार पुद्गल के विषय में कहा, उसी प्रकार स्कन्ध के विषय में भी कहना चाहिये।
विवेचन-यहाँ 'पुद्गल' शब्द मे परमाणु और स्कन्ध दोनों लिये जा सकते हैं । परमाण में भिन्न समय में रुक्ष स्पर्श और भिन्न समय में स्निग्ध स्पर्श पाया जा सकता है। द्वयणुक आदि स्कन्ध में तो एक ही समय में रूक्ष और स्निग्ध दोनों स्पर्श पाये जा सकते हैं। क्योंकि उसका एक देश रूक्ष और एक देश स्निग्ध हो सकता है। वह अनेक वर्णादि परिणाम में परिणत होता है और फिर एक वर्णादि परिणाम को भी परिणत होता है। अर्थात् एक वर्णादि परिणाम के पहले प्रयोग-करण द्वारा अथवा विस्रसाकरण द्वारा अनेक वर्णादि रूप पर्याय को प्राप्त होता है । परमाणु तो समय-भेद से अनेक वर्णादि रूप से परिणत होता है और स्कन्ध समय-भेद से या युगपद् अनेक वर्णादि रूप से परिणत हो सकता है। उस परमाणु या स्कन्ध का जब अनेक वर्णादि परिणाम क्षीण हो जाता है, तब वह एक वर्णादि पर्याय से परिणत हो जाता है । यहाँ भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत्काल, इन तीनों काल सम्बन्धी प्रश्न करके उत्तर दिया गया है। इसी प्रकार स्कन्ध के विषय में भी प्रश्नोत्तर किया गया है।
जीव का दुःख और सुख
४ प्रश्न-एस णं भंते ! जीवे तीयमणंतं सासयं समयं दुक्खी , समयं अदुक्खी, समयं दुक्खी वा अदुक्खी वा ? पुट्विं च णं करणेणं अणेगभावं अणेगभूयं परिणामं परिणमइ ? अह से वेयणिजे णिजिण्णे भवइ, तओ पच्छ एगभावे एगभूए सिया ?
४ उत्तर-हंता गोयमा ! एस णं जीवे जाव एगभूए सिया,
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