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________________ भगवती सूत्र . १४ . ४ पुद्गल के वर्णादि परिवर्तन च णं करणं अणेगवण्णं अणेगरूवं परिणामं परिणमइ ? अह से परिणामे णिजिणे भवइ तओ पच्छा एगवण्णे एगरूवे सिया ? १ उत्तर - हंता गोयमा ! एस णं पोग्गले तीयं० तं चैव जाव एगरूवे सिया । २ प्रश्न - एस णं भंते ! पोग्गले पडुप्पण्णं सासयं समयं ० १ २३०४ २ उत्तर - एवं चैव एवं अणागयमतं पि । ३ प्रश्न - एस णं भंते! संधे तीयमतं ? ว ३ उत्तर - एवं चेव, संधे वि जहा पोग्गले । कठिन - शब्दार्थ - लुक्खी - रूक्ष, अलक्खी - अरूक्ष (स्निग्ध), तीयमणंत - अनन्त भूतकाल, सासयं - शाश्वत, पडुप्पण्णं - प्रत्युत्पन्न ( वर्त्तमान) भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! यह पुद्गल ( परमाणु या स्कन्ध ) अनन्त, अपरिमित और शाश्वत अतीत काल में एक समय तक रूक्ष स्पर्श वाला रहा, एक समय तक अरूक्ष अर्थात् स्निग्ध स्पर्श वाला और एक समय तक रूक्ष और स्निग्ध दोनों प्रकार के स्पर्शवाला रहा ? पहले करण अर्थात् प्रयोग करण और वित्रता करण के द्वारा अनेक वर्ण और अनेक रूप वाले परिणाम से परिणत हुआ और उस अनेक वर्ण आदि परिणाम के क्षीण होने पर वह पुद्गल एक वर्ण वाला और एक रूप वाला रहा था ? १ उत्तर - हाँ, गौतम ! यह पुद्गल अतीत काल में इत्यादि यावत् 'एक रूप वाला था' - तक कहना चाहिये । २ प्रश्न - हे भगवन् ! यह पुद्गल ( परमाणु या स्कन्ध ) शाश्वत वर्तमान काल में, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । २ उत्तर - हे गौतम! पूर्वानुसार जानना चाहिये । इसी प्रकार अनन्त अनागत काल के विषय में भी जानना चाहिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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