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________________ ... मग पत्री पुत्र-शः १४.३. ४ पुद्गल के वर्णादि परिवर्तन २३०३ नरयिकों तक कहना चाहिये । इसी प्रकार यावत वेदना परिणाम का भी अनुभव करते हैं, इत्यादि जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के दूसरे उद्देशक के अनुसार कहना चाहिये, यावत् प्रश्न-हे भगवन् ! अधःसप्तम पृथ्वी के मैरयिक, किस प्रकार की परिग्रह संज्ञा परिमाण का अनुभव करते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमनाम परिग्रह संज्ञा परिणाम का अनुभव करते हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन-नरयिक जीव, अनिष्ट यावत् अमनाम (मन के प्रतिकूल) पुद्गल परिणाम का अनुभव करते हैं । इसी प्रकार शीत, उष्ण, भूख, प्यास, खुजली, परतन्त्रता, भय, शोक, जरा और व्याधि, इन दस प्रकार की वेदनाओं का भी अनुभव करते हैं । इस विषय में यहाँ जीवाभिगम सूत्र का अतिदेश किया गया है । वहाँ पुद्गल परिणाम वेदना आदि बीस द्वार कहे हैं। ॥ चौदहवें शतक का तीसरा उद्देशक सम्पूर्ण । शतक १४ उद्देशक ४ पुद्गल के वर्णादि परिवर्तन १ प्रश्न-एस णं भंते ! पोग्गले तीयमणंतं सासयं समयं लुक्खी, समयं अलुक्खी, समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा ? पुट्वि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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