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... मग पत्री पुत्र-शः १४.३. ४ पुद्गल के वर्णादि परिवर्तन
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नरयिकों तक कहना चाहिये । इसी प्रकार यावत वेदना परिणाम का भी अनुभव करते हैं, इत्यादि जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति के दूसरे उद्देशक के अनुसार कहना चाहिये, यावत्
प्रश्न-हे भगवन् ! अधःसप्तम पृथ्वी के मैरयिक, किस प्रकार की परिग्रह संज्ञा परिमाण का अनुभव करते हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमनाम परिग्रह संज्ञा परिणाम का अनुभव करते हैं।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।
विवेचन-नरयिक जीव, अनिष्ट यावत् अमनाम (मन के प्रतिकूल) पुद्गल परिणाम का अनुभव करते हैं । इसी प्रकार शीत, उष्ण, भूख, प्यास, खुजली, परतन्त्रता, भय, शोक, जरा और व्याधि, इन दस प्रकार की वेदनाओं का भी अनुभव करते हैं । इस विषय में यहाँ जीवाभिगम सूत्र का अतिदेश किया गया है । वहाँ पुद्गल परिणाम वेदना आदि बीस द्वार कहे हैं।
॥ चौदहवें शतक का तीसरा उद्देशक सम्पूर्ण ।
शतक १४ उद्देशक ४
पुद्गल के वर्णादि परिवर्तन
१ प्रश्न-एस णं भंते ! पोग्गले तीयमणंतं सासयं समयं लुक्खी, समयं अलुक्खी, समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा ? पुट्वि
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