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________________ भगवती मूत्र-ग. १४ उ.३ देवों में छोटे-बड़े का आदर-सम्मान २२९५ कृतिकर्म, अभ्युत्थान, अंजलि-प्रग्रह, आसनाभिग्रह, आसनानप्रदान, सम्मुख जाना बैठे हुए आदरणीय पुरुष की सेवा करना और जब वे उठकर जायें, तब कुछ दूर तक उनके पीछे जाना, इत्यादि विनय है ? ३ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । अर्थात् नैरयिक में सत्कार आदि विनय नहीं है। ४ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार देवों में सत्कार, सम्मान यावत् अनुगमन आदि विनय है ? ४ उत्तर-हाँ, गौतम है। इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमारों तक कहना चाहिये । जिस प्रकार नरयिकों के लिए कहा, उसी प्रकार पृथ्वीकायिक से लेकर यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक कहना चाहिये । - ५ प्रश्न-हे भगवन् ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च-योनिक जीवों में सत्कार यावत् अनुगमन इत्यादि विनय है ? ५ उत्तर-हाँ गौतम ! है, परन्तु आसनाभिग्रह (आसन देना) और आसनानुप्रदान (आसन को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना)रूप विनय नहीं होता । जिस प्रकार असुरकुमारों के विषय में कहा, उसी प्रकार मनुष्य यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिये। विवेचन-सत्कार सम्मान आदि विनय, नैरयिक और पृथ्वीकायिकादि जीवों में नहीं है । क्योंकि उनके पास इस प्रकार के साधन नहीं है। तथा वे सदा दुःख में पड़े हुए रहते हैं। देवों में छोटे-बड़े का आदर-सम्मान ६ प्रश्न-अप्पड्ढीए णं भंते ! देवे महड्ढियस्त देवस्स मझं. मझेणं वीइवएजा ? ६ उत्तर-णो इणटे समढे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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