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भगवती सूत्र. १४ उ : नैरविकादि में आदर-सत्कार
११ उत्तर - हे गौतम ! कोई जाता है और कोई नहीं जाता । प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर-हे गौतम ! देव दी प्रकार के कहे गये हैं, तद्यथा-नायीमिथ्यादृष्टिउपपन्नक और अमायी- समदृष्टि उपपन्नक । मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक देव, भावितात्मा अनगार को देखकर भी वन्दना नमस्कार नहीं करता और कल्याणकारी, मंगलकारी, देवतुल्य, ज्ञानवान् नहीं समझता यावत् पर्युपासना नहीं करता । इसलिये वह देव, भावितात्मा अनगार के मध्य में होकर चला जाता है और अमायी समदृष्टि उपपन्नक देव, भावितात्मा अनगार को देखकर वन्दना नमस्कार करता है यावत् पर्युपासना करता है । वह भावितात्मा अनगार के मध्य में होकर नहीं जाता। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि कोई देव जाता है। और कोई नहीं जाता ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! महाकाय ( बड़े परिवार वाला) और महाशरीर ( बड़े शरीर वाला) असुरकुमार देव, भावितात्मा अनगार के मध्य में होकर जाता है ?
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२ उत्तर - हे गौतम! पूर्ववत् जानना चाहिये । इस प्रकार देव-दण्डक यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिये ।
विवेचन - यहाँ महाकाय का अर्थ है- 'प्रशस्त काय वाला' अथवा 'महाकाय (परिवार) वाला देव । यहाँ देव - दण्डक कहने का आशय यह है कि नैयिक और पृथ्वीं कायिकादि जीवों के उपर्युक्त कार्य एवं साधनों का अभाव है । यह केवल देवों में ही संभव है । इसलिये इस प्रसंग में देव दण्डक ही कहा गया है ।
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नैरयिकादि
आदर-सत्कार
३ प्रश्न - अत्थि णं भंते ! णेरइयाणं सक्कारे इ वा, सम्माणे इवा, किकम्मे इवा, अभुट्टाणे इ वा, अंजलिपग्गहे इ वा
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