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भगवता सूत्र-श. १४ उ. : अनगार को अवगणना करने वाले इव -...
१ उत्तर-गोयमा ! अत्थेगइए वीडवएज्जा, अत्थेगइए णो वीइवएज्जा ।
प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-'अत्थेगइए वीइवएज्जा, अत्थेगइए णो वीइवएज्जा' ?
उत्तर-गोयमा ! दुविहा देवा पण्णत्ता, तं जहा-मायीमिच्छा. दिवीउवषण्णगा य अमायीसम्मदिट्ठीउववण्णगा य, तत्थ णं जे से मायीमिच्छदिट्ठीउववण्णए देवे से णं अणगारं भावियप्पाणं पासइ, पासित्ता णो वंदइ, णो णमंसइ, णो सक्कारेइ, णो सम्माणेइ, णो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं जाव पज्जुवासइ, से णं अणगारस्स भावियप्पणो मज्झमझेणं वीइवएजा । तत्थ णं जे से अमायी. सम्मदिविउववण्णए देवे से णं अणगारं भावियप्पाणं पासइ पासित्ता वंदइ, णमंसइ, जाव पज्जुवासइ । से णं अणगारस्स भावियप्पणो मझमझेणं णो वीइवएजा, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुइ जाव णो वीइवएजा।
२ प्रश्न-असुरकुमारे णं भंते ! महाकाये महासरीरे ? २ उत्तर-एवं चेव, देवदंडओ भाणियन्वो जाव वेमाणिए । कठिन शब्दार्थ-वीइवएज्जा-चला जाता है ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या महाकाय (बड़े परिवार वाला) और महाशरीर (बड़े शरीर वाला) देव, भावितात्मा अनगार के बीच में होकर जाता है ?
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