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________________ भगवती मत्र-ग. १४ उ. : अदगार की अवगणना करने वाले देव २२९५ है, और वे तमस्कायिक देव, तमस्काय करते हैं। हे गौतम ! इस प्रकार देवेन्द्र देवराज ईशान, तमस्काय करता है। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार देव भी तमस्काय करते है ? ८ उत्तर-हाँ, गौतम ! करते हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार देवों के तमस्काय करने के कौन से कारण हैं ? उत्तर-हे गौतम ! क्रीड़ा और रति के निमित्त, शत्रु को विस्मित करने के निमित्त, छिपाने योग्य धन की रक्षा के लिए और अपने शरीर को प्रच्छादित करने के लिए असुरकुमार देव भी तमस्काय करते हैं । इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिये। हे भगवन ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन-अन्धेरे के सम्ह को 'तमस्काय' कहते हैं । क्रीड़ा, रति के निमित्त, शत्रु को विस्मित करने के लिए, गोपनीय द्रव्य की रक्षा के लिये और अपने शरीर को प्रच्छादित करने (ढकने) के लिए-इन चार कारणों से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योनिपी और वैमानिक देव तमस्काय करते हैं , ॥ चौदहवें शतक का दूसरा उद्देशक सम्पूर्ण । शतक १४ उद्देशक ३ * अनगार की अवगणना करने वाले देव १ प्रश्न-देवे णं भंते ! महाकाए महासरीरे अणगारस्स भावि. यप्पणो मझमज्झेणं वीइवएज्जा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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