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________________ २२९४ भगवती सूत्र...: 3. २ देवकृत तमस्काय खलु गोयमा ! ईसाणे देविंदे देवराया तमुक्कायं पकरेइ । __८ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! असुरकुमारा वि देवा तमुक्कायं पकरेंति ? ८ उत्तर-हंता अस्थि । प्रश्न-किं पत्तियं णं भंते ! असुरकुमारा देवा तमुक्कायं पकरेंति ? उत्तर-गोयमा ! किड्डा रइपत्तियं वा पडिणीयविमोहणट्टयाए वा गुत्तिसारक्खणहेउं वा अप्पणो वा सरीरपच्छायणट्टयाए, एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा वि देवा तमुक्कायं पकरेंति, एवं जाव वेमाणिया। 8 सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ ॐ ॥ तेरसमसए वीओ उद्देसो समत्तो । कठिन शब्दार्थ-तमुक्कायं-तमस्काय, किड्डा-क्रीड़ा, रइपत्तियं-रति (बिलास) के लिए. पडिणीयविमोहणट्टयाए-शत्रु को मोहित करने के लिए, गुत्तिसारक्खणहेउ-गुप्त निधि की रक्षा के लिए, सरीरपच्छायणट्ठयाए-शरीर छुपाने के लिए। भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! जब देवेन्द्र देव-राज ईशान, तमस्काय करने की इच्छा करता है, तब किस प्रकार करता है ? ७ उत्तर-हे गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज ईशान तमस्काय करने की इच्छा करता है, तब आभ्यन्तर परिषद् के देवों को बुलाता है । वे आभ्यन्तर परिषद् के देव मध्यम परिषद् को बुलाते हैं, इत्यादि वर्णन शक्र वर्णन के समान जाना चाहिये, यावत् वे आभियोगिक देव तमस्कायिक देवों को बुलाते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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