________________
भगवर्ती मुत्र-श. १४ ३. देवरत नमस्काय
२२९३
वाह्य (बाहर-बाहर) के देवों को बुलाते हैं । वे बाह्य-बाह्य देव, आभियोगिक देवों को बुलाते हैं । वे आभियोगिक देव, वृष्टिकाधिक देवों को बुलाते हैं। तत्पश्चात् वे वृष्टि कायिक देव, वष्टि करते हैं। इस प्रकार हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र वृष्टि करता है।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार देव भी वृष्टि करते है ? ६ उत्तर-हाँ, गौतम ! करते हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार देव वृष्टि क्यों करते हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! अरिहन्त भगवन्तों के जन्म-महोत्सव, निष्क्रमणमहोत्सव, ज्ञानोत्पत्ति-महोत्सव और निर्वाण-महोत्सव के अवसर पर, असुरकुमार दर वृष्टि करते हैं । इसी प्रकार नागकुमार यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिये। वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिये।
देवकृत तमस्काय
७ प्रश्न-जाहे णं भंते ! ईसाणे देविंद देवराया तमुक्कायं काउकामे भवइ से कहमियाणिं पकरेइ ? । ____७ उत्तर-गोयमा ! ताहे चेव णं से ईसाणे देविंदे देवराया अभितरपरिसाए देवे सदावेइ, तएणं ते अभितरपरिसगा देवा सदाविया समाणा एवं जहेव सकस जाव तएणं ते आभि
ओगिया देवा सद्दाविया समाणा तमुक्काइए देवे सद्दावेंति, तएणं ते तमुक्काझ्या देवा सदाविया समाणा तमुक्कायं पकरेंति, एवं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org