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भगवती सूत्र-श. १४ उ. २ देववृत जल-वर्षा
- ६ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! असुरकुमारा वि देवा वुट्टिकायं पकरेंत ।
६ उत्तर-हंता अस्थि । प्रश्न-किंपत्तियं णं भंते ! असुरकुमारा देवा बुटिकायं पक
रेंति ?
उत्तर-गोयमा ! जे इमे अरहंता भगवंता एएसि णं जम्मणमहिमासु वा णिक्खमणमहिमासु वा णाणुप्पायमहिमासु वा परिणिव्वाणमहिमासु वा एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा वि देवा वुट्टिकायं पकरेंति, एवं णागकुमारा वि. एवं जाव थणियकुमारा । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया एवं चेव ।
· कठिन शब्दार्थ-पण्णे-पर्जन्य (मेघ) टिकायं-वृष्टिकाय ( जल समूह ) काउकामेकरने की इच्छा वाला, कहमियाणि-किस प्रकार, ताहे-तव, सद्दावेइ-बुलावे, किंपत्तियंकिसलिए ।
भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! कालवर्षी (काल-समय पर बरसने वाला) मेघ, वृष्टिकाय (जल समूह) बरसाता है ।
४ उत्तर-हां, गौतम ! बरसाता है।
५ प्रश्न-हे भगवन् ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र, वृष्टि करने की इच्छा वाला होता है, तब वह किस प्रकार वृष्टि करता है ?
५ उत्तर-हे गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र, वृष्टि करने की इच्छा वाला होता है, तब आभ्यन्तर परिषद् के देवों को बुलाता है, बुलाये हुए वे आभ्यन्तर परिषद् के देव, मध्यम परिषद् के देवों को बुलाते हैं, वे मध्यम परिषद् के देव, बाह्य परिषद् के देवों को बुलाते हैं । बाह्य परिषद् के देव, बाह्य
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