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भगवती सूत्र-श. १४ उ. २ उन्माद के भेद
यक्षावेश से और मोहनीय कर्म के उदय से होने वाला। इन दोनों में से जो यक्षावेश रूप उन्माद है, वह सुखपूर्वक वेदा जा सकता है और सुखपूर्वक छुड़ाया जा सकता है । मोहनीय कर्म के उदय से होने वाला उन्माद दुःखपूर्वक वेदा जाता है और दुःखपूर्वक ही छुड़ाया जा सकता है ।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार का उन्माद कहा गया है ?
२ उत्तर-हे गौतम ! उनके दो प्रकार का उन्माद कहा गया है, यथायक्षावेश रूप उन्माद और मोहनीय कर्म के उदय से होने वाला उन्माद ।
प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया ?
उत्तर-हे गौतम ! कोई देव, यदि नैयिक जीवों पर अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करता है, तो उन अशुभ पुद्गलों के प्रक्षेप से वह नरयिक जीव, यक्षावेश रूप उन्माद को प्राप्त होता है और मोहनीय कर्म के उदय से मोहनीय कपजन्य उन्माद को प्राप्त होता है । इस कारण हे गौतम ! दो प्रकार का उन्माद कहा गया है।
३ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमारों को कितने प्रकार का उन्माद कहा गया है ?
३ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिकों के समान दो प्रकार का उन्माद कहा गया है । विशेषता यह है कि उनसे महद्धिक देव, असुरकुमारों पर अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करता है, उन अशुभ पुद्गलों के प्रक्षेप से वे यक्षावेश रूप उन्माद को प्राप्त होते हैं और मोहनीय कर्म के उदय से मोहनीय कर्मजन्य उन्माद को प्राप्त होते हैं। शेष सब पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिये । पृथ्वीकायिक से लेकर मनुष्यों तक, नैरयिकों के समान कहना चाहिये। जिस प्रकार असुरकुमारों के विषय में कहा, उसी प्रकार वाणव्यन्तर ज्योतिषी और वैमानिकों के विषय में भी कहना चाहिये ।
विवेचन-उन्माद-जिससे स्पष्ट चेतना अर्थात् विवेक-ज्ञान नष्ट हो जाय, उसे
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