SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८८ भगवती सूत्र-श. १४ उ. २ उन्माद के भंद . २ प्रश्न-णेरइयाणं भंते ! कइविहे उम्माए पण्णत्ते ? २ उत्तर-गोयमा ! दुविहे उम्माए पण्णत्ते, तं जहा-जक्खा. वेसे य मोहणिजस्स य कम्मरस उदएणं । प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'णेरइयाणं दुविहे उम्माए पण्णत्ते, तं जहा-जक्खावेसे य मोहणिजस्स जाव उदएणं' ? उत्तर-गोयमा ! देवे वा से असुभे पोग्गले पक्खिवेजा, से णं तेसिं असुभाणं पोग्गलाणं पक्खिवणयाए जक्खाएसं उम्माय पाउणेजा, मोहणिजस्स वा कम्मरस उदएणं मोहणिजं उम्मायं पाउणेजा, से तेणटेणं जाव उम्माए ।' ३ प्रश्न-असुरकुमाराणं भंते ! कइविहे उम्माए पण्णत्ते ? ३ उत्तर-एवं जहेव णेरड़याणं; णवरं देवे वा से महिइढीयतराए असुभे पोग्गले पक्खिवेज्जा, से गं तेर्सि असुभाणं पोग्गलाणं . पक्खिवणयाए जक्खाएसं उम्मायं पाउणेज्जा, मोहणिज्जस्स वा, सेसं तं चेव, से तेणटेणं जाव उदएणं, एवं जाव थणियकुमाराणं । पुढविकाइयाणं जाव मणुस्साणं एएसि जहा णेरइयाणं; वाणमंतरजोइस-वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं। कठिन शब्दार्थ-उम्माए-उन्माद, जयखावेसे-यक्षावेश, सुहविमोयणतराए-मुग्वपूर्वक मुक्त होने योग्य । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! उन्माद कितने प्रकार का कहा गया है ? १ उत्तर-हे गौतम ! उन्माद दो प्रकार का कहा गया है । यथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy