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भगवती सूत्र - १४ उ. २ उन्माद के भेद
समयादि के अन्तर से रहित प्रथम समय में जिनकी उत्पत्ति दुःख युक्त है, उन्हें 'अनन्तरखेदोपपन्नक' कहते हैं, जिनकी खेद युक्त उत्पत्ति में दो तीन आदि समय व्यतीत हो चुके हैं, उन्हें 'परम्परखेदोपपन्नक' कहते हैं। जिनकी अनन्तर या परम्पर वेद युक्त उत्पत्ति नहीं है, उन्हें 'अनन्तरपरम्पर वेदानुपपन्नक' कहते हैं। ऐसे जीव विग्रह-गतिवर्ती होते हैं । इन जीवों के विषय में पूर्वोक्त चार दण्डक कहने चाहिए। वे चार दण्डक ये हैं(१) खेदोपपन्नक दण्डक (२) दीपपन्नक सम्बन्धी आयुष्य-बन्ध का दण्डक ( ३ ) खेदनिर्गत दण्डक (४) खेदनिर्गत सम्बन्धी आयुष्य बन्ध का दण्डक । ये चारों दण्डक पूर्व कहे अनुसार कहने चाहिये ।
|| चौदहवें शतक का पहला उद्देशक सम्पूर्ण ||
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शतक १४ उद्देशक २
उन्माद के भेद
१ प्रश्न - कsविहे णं भंते ! उम्मार पण्णत्ते ? १ उत्तर - गोयमा ! दुविहे उम्मार पण्णत्ते, तं जहा - जक्खा - वेसे यं मोहणिज्जस्स य कम्मस्स उदपणं । तत्थ णं जे से जक्खावेसे से णं सुहवेयणतराए चैव सुहविमोयणतराए चेव । तत्थ णं जे से मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदपणं से णं दुहवेयणतराए चैव दुहविमोयणतराए चेव ।
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