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भगवती सूत्र-श. १४ 32 ने रयिक अनंतरोपपन्नकादि
जीव, विग्रह-गति समापन्नक हैं, वे 'अनन्तरपरंपर अनिर्गत' हैं । इस कारण है गौतम! ऐसा कहा गया है कि नरयिक जीव यावत् 'अनन्तरपरम्पर अनिर्गत' हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिये।
१० प्रश्न-हे भगवन् ! अनन्तर निर्गत नैरयिक जीव, नरकायुष्य बाँधते है, यावत् देवायुष्य बांधते हैं ?
१० उत्तर-हे गौतम ! वे नरकायुष्य नहीं बांधते यावत् देवायुष्य भी नहीं बांधते।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! वे परम्परनिर्गत नैरयिक नरकायुष्य बांधते हैं, इत्यादि प्रश्न।
११ उत्तर-हे गौतम ! वे नरकायुष्य भी बांधते हैं और यावत् देवायुष्य भी बांधते हैं।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! अनन्तरपरम्पर अनिर्गत नरयिक क्या नरकायुष्यबांधते हैं, इत्यादि प्रश्न ।
१२ उत्तर-हे गौतम ! वे नरकायुष्य नहीं बांधते यावत् देवायुष्य भी नहीं बांधते । इसी प्रकार शेष सभी यावत् वैमानिक तक कहना चाहिये।
१३ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीव, अनन्तर खेदोपपन्न हैं, परम्पर खेदोपपन्न है या अनन्तरपरम्पर खेदानुपपन्न है ?
१३ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक जीव, अनन्तर खेदोपपन्न भी हैं, परम्पर खेदोपपन्न भी हैं और अनन्तरपरम्पर खेदानुपपन्न भी हैं। इसी अभिलाप द्वारा पूर्वोक्त रूप से चार दण्डक कहने चाहिये।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन ! यह इसी प्रकार है-कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं।
विवेचन-परम्पर निर्गत नैरयिक सभी गति का आयुष्य बांधते हैं। क्योंकि परम्पर निर्गत नैरयिक मनुष्य और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च ही होते हैं । वे सर्वायुबन्धक होते हैं । इस प्रकार परम्पर निर्गत सभी वैक्रिय जन्म वाले जीव, अर्थात् देव और नरयिक तथा औदारिक जन्म वाले भी कितनेक जीव मनुष्य और तिर्यञ्च होते हैं । इसीलिये परम्पर निर्गत जीव मभी गति का आयुष्य बांधते हैं ।
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