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भगवती मूत्र-१. १४ 3. . रायक अनन्तरोपपनकादि ...
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१२ उत्तर-गोयमा ! णो णेरड्याउयं पकरेंति, जाव णो देवाउयं पकरेंति एवं णिरवसेसं जाव वेमाणिया ।
१३ प्रश्न-णेरड्या णं भंते ! किं अणंतरवदोववण्णगा, परंपर. खेदोक्वण्णगा, अणंतरपरंपरखेदाणुववष्णगा ?
१३ उत्तर-गोयमा ! णेरड्या० एवं एएणं अभिलावणं तं चैव चत्तारि दंडगा भाणियव्वा ।
* मेवं भंते ! मेवं भंते ! ति ॐ
॥ चोदसमसए पढमो उद्देसो समत्तो ।। कठिन शब्दार्थ-अणंतरणिग्गया-अनन्तर निर्गत-एक भव में निकल कर दूसरा भव प्राप्त होने के प्रथम समयवर्ती जीव, परंपरणिग्गया-परम्पर निर्गत (जिन जीवों को एक भव से निकल कर भवान्तर को प्राप्त हुए दो तीन आदि समय हो गये हैं, अणतरपरंपरअणिग्गया-अनन्तरपरम्प र अनिर्गत--जो एक भव से निकल कर भवान्तर में उत्पत्ति स्थान को प्राप्त नहीं हुए, अभी जो विग्रहगति में ही चल रहे हैं ऐसे जीव ।।
___ भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक अनन्तर निर्गत हैं, परम्पर निर्गत हैं या अनन्तरपरम्पर अनिर्गत है ?
९ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक जीव अनन्तर निर्गत भी होते हैं, परम्पर निर्गत भी होते हैं और अनन्तरपरम्पर निर्गत भी होते हैं। • प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-हे गौतम ! जिन नैरयिक जीवों को नरक से निकल कर उत्पत्ति स्थान में पहुंचने का प्रथम समय ही है, वे 'अनन्तर निर्गत' हैं। जिन नैरयिक जीवों को नरक से निकल कर उत्पत्ति स्थान में पहुंचने के प्रथमसमय व्यतिरिक्त द्वितीयादि समय हो गये है, वे ‘परम्पर निर्गत' हैं और जो नैरयिक
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