________________
२२७२
भगवती सूत्र - श. १३३. १० छाद्यस्थिक समुद्घात
कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।
विवेचन - यहाँ अनेक प्रकार की विकुर्वणा का कथन किया गया है। इस प्रकार की विकुर्वणा, वैकिलब्धि सम्पन्न मायी ( प्रमादी ) अनगार करता है, अमायी ( अप्रमादी ) अनगार नहीं करता । इस प्रकार की विकुर्वणा करके यदि वह ( मायी अनगार) इस प्रमाद-स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण कर लेता है, तो आराधक होता है । यदि आलोचना और प्रतिक्रमण नहीं करता है, तो विराधक होता है ।
|| तेरहवें शतक का नौवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
Jain Education International
शतक १३ उद्देशक १० छाद्मस्थिक समुद्घात
१ प्रश्न - क णं भंते ! छाउमत्थिय समुग्धाया पण्णत्ता ?
१ उत्तर - गोयमा ! छ छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा१ वेयणासमुग्धा एवं छाउमत्थिय समुग्धाया णेयव्वा, जहा पण्णवणाए, जाव - आहारगसमुग्धायेत्ति ।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरड़
-
|| तेरसमस दसमो उद्देसो समत्तो ॥
॥ तेरसमं सयं समत्तं ॥
कठिन शब्दार्थ - छाउमत्थिय - छाद्मास्थिक (छद्मस्थ सम्बन्धी ) |
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org