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भगवती सूत्र . १३ . ९ अनगार की वैक्रिय-शक्ति
को पानी में डुबाती और मुख बाहर रखती हुई रहती हैं, क्या भावितात्मा अनगार भी उसी प्रकार की विकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है ?
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१४ उत्तर - हां, गौतम ! शेष सभी वागुली की तरह जानना चाहिये । १५ प्रश्न - हे भगवन् ! जैसे कोई वन-खण्ड हो, जो काला, काले प्रकाश वाला, यावत् मेघ के समूह वत् प्रसन्नता देने वाला यावत् दर्शनीय हो, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी स्वयं उस वन खण्ड के समान विकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है ?
१५ उत्तर - हां, गौतम ! शेष पूर्ववत् ।
१६ प्रश्न - हे भगवन् ! जैसे कोई पुष्करणी हो, जो चतुष्कोण, समतीर, अनुक्रम से सुशोभित यावत् पक्षियों के मधुर शब्दों से युक्त, प्रसन्नता देने वाली, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी उस पुष्करणी के समान विकुर्वणा करके आकश में उड़ सकता है ? १६ उत्तर - हां, गौतम ! उड़ सकता है ।,
१७ प्रश्न - हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार पूर्वोक्त पुष्करणी के समान कितने रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ?
१७ उत्तर - हे गौतम! शेष पूर्ववत् जानना चाहिये । परन्तु सम्प्राप्ति द्वारा इतने रूपों की विकुर्वणा की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं । १८ प्रश्न - हे भगवन् ! पूर्वोक्त रूपों की विकुर्वणा मायी अनगार करता है या अमायो ( माया रहित) अनगार करता है ?
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१८ उत्तर - हे गौतम! मायी अनगार विकुर्वणा करता है, अमायी अनगार विकुर्वणा नहीं करता । मायी अनगार उस विकुर्वणा रूप प्रमाद स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना काल कर जाय, तो उसे आराधना नहीं होती, इत्यादि तीसरे शतक के चौथे उद्देशक के अनुसार यावत् आलोचना और प्रतिक्रमण करले तो उसको 'आराधना होती है'-तक कहना चाहिये,
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है- कह
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