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भगवती सूत्र-श. ५६ उ. ५ अनगार की वैक्रिय-शक्ति
१८ उत्तर-गोयमा ! मायी विउव्वइ, णो अमायी विउव्वइ । मायी णं तस्स ठाणस्स अणालोइय० एवं जहा तइयसए चउत्थुदेसए जाव 'अस्थि तस्स आराहणा' ।
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सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति
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॥ तेरसमसए णवमो उद्देसो समत्तो ।।
कठिन शब्दार्थ-मुणालिया-नलिनी, अवद्दालिय-तोड़ता हुआ, उम्मज्जिय-डुबाता हुआ।
भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे कोई पुरुष हाथ में चक्र लेकर जाता है, उसी प्रकार क्या भावितात्मा अनगार भी चक्रकृत्य को हस्तगत करके (तदनुसार विकुर्वणा करके) आकाश में उड़ सकता है ?
__ ११ उत्तर-हाँ, गौतम ! शेष सभी पूर्व कथित रज्जुबद्ध घटिका के समान जानना चाहिये । इसी प्रकार छत्र और चामर का भी कहना चाहिये ।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे कोई पुरुष, रत्न लेकर गमन करता है, उसी प्रकार वज्र, वड्र्य यावत् रिष्टरत्न तथा उत्पल और पद्म यावत् कोई पुरुष सहस्रपत्र हाथ में लेकर गमत करता है, उसी प्रकार क्या भावितात्मा अनगार भी स्वयं ऐसे रूपों की विकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है ?
१२ उत्तर-हाँ, गौतम ! उसी प्रकार जानना चाहिये। - १३ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे कोई पुरुष कमल को डण्डी को तोड़ता हआ गमन करता है, उसी प्रकार क्या भावितात्मा अनगार भी स्वयं इस प्रकार की विकुर्वणा कर आकाश में उड़ सकता है ?
१३ उत्तर-हाँ, गौतम ! शेष पूर्ववत् । १४ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे कोई मृणालिका (नलिनी) अपने शरीर
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