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________________ भगवती मूत्र-ग. १३ उ. ५ अनगार की वैक्रिय-शक्ति १ उत्तर-गोयमा ! हंता, उप्पएन्जा। २ प्रश्न-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू केयाघडियाकिचहत्थगयाई रूवाइं विउवित्तए ? २ उत्तर-गोयमा ! से जहाणामए जुवई जुवाणे हत्थेणं हाथएवं जहा तइयसए पंचमुद्देसए जाव ‘णो चेव णं संपत्तीए विउव्विसु वा विउब्धिति वा विउविस्मंति वा'। ३ प्रश्न-से जहाणामए केड़ पुरिसे हिरण्णपेलं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा हिरण्णपेलहत्थकिच्चगएणं अप्पा. णेणं० ? ३ उत्तर-सेसं तं चेव, एवं सुवण्णपेलं, एवं ग्यणपेलं, वइरपेलं, वत्थपेलं, आभरणपेलं, एवं वियलकिड्ड, मुंबकिड्डे, चम्मकिड्डे कंबलकिड्डं, एवं अयभार, तंबभारं, तउयभार, सीसगभारं, हिरण्णभारं सुवण्णभारं, वइरभारं । कठिन शब्दार्थ-केयाघडियं-रस्सी से बांधा हुआ घड़ा, अप्पाणेणं-आत्मा से (स्वयं) वेहासं-आकाश में, किच्चहत्थगएणं-कार्य हस्तगत करके (वैक्रिय लब्धि से ऐसा रूप बना कर) हिरण्णपेलं-चांदी की पेटी, वियलकिडं-बांस के टुकड़ों से बनी हुई चटाई, सुंबकि९वीरण की बनी हुई चटाई। भावार्थ-१ प्रश्न-राजगह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-हे भगवन् ! जैसे कोई पुरुष, रस्सी से बन्धी हुई घटिका लेकर जाता है, उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी वैक्रिय लब्धि से रस्सी से बन्धी हुई घटिका हाथ में लेकर स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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