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भगवती सूत्र - १३ उ. ७ मृत्यु के विविध प्रकार
गमन मरण और २ भक्तप्रत्याख्यान मरण ।
३१ प्रश्न - हे भगवन् ! पादपोपगमन मरण कितने प्रकार का कहा गया ? ३१ उत्तर - हे गौतम ! दो प्रकार का कहा गया । यथा - १ निर्धारिम और अनिर्धारिम यावत् अवश्य अप्रतिकर्म-तक कहना चाहिये ।
३२ प्रश्न- हे भगवन् ! भक्तप्रत्याख्यान मरण कितने प्रकार का कहा गया ?
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३२ उत्तर - हे गौतम ! पूर्व कथनानुसार उसके निर्धारिम और अनिर्हारिम- ये दो भेद होते हैं। इनमें विशेषता यह है कि दोनों प्रकार का भक्तप्रत्याख्यान मरण अवश्य ही सप्रतिकर्म ( शरीर संस्कार सहित ) होता है ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं ।
विवेचन - आयुष्य पूरा होने पर आत्मा का शरीर से पृथक् होना, अथवा शरीर मे प्राणों का निकलना तथा बन्धे हुए आयुष्य में से प्रति समय आयु- दलिकों का क्षय होना 'मरण' कहलाता है ।
वीचि (तरंग के समान) प्रति समय भोगे हुए आयुष्य-कर्म के पुद्गलों का अन्यअन्य आयुष्य के दलिकों के उदय होने के साथ क्षय होना 'आवीचि मरण' कहलाता है । अवधिमरण - अवधि ( मर्यादा) सहित मरण । नरकादि गतियों के कारणभूत वर्तमान आयुष्य कर्म के पुद्गलों को एक बार भोग कर छोड़ देने के बाद जीव, फिर उन्हीं पुद्गलों को भोग कर मृत्यु प्राप्त करे - उसे 'अवधि मरण' कहते हैं ।
आत्यन्तिक मरण - आयुष्य कर्म के है, उन्हें फिर नहीं भोगना पड़े, तो उन होता है ।
जिन दलिकों को एक बार भोग कर छोड़ दिया दलिकों की अपेक्षा जीव का 'आत्यन्तिक मरण, '
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बालमरण-व्रत रहित प्राणियों का मरण 'बाल-मरण' कहलाता है । पण्डितमरण-सर्व-विरत साधुओं का मरण 'पण्डित-मरण' कहलाता है ।
आवीचिकमरण, अवधिमरण और आत्यन्तिकमरण के प्रत्येक के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव की अपेक्षा पांच-पांच भेद किये गये हैं । फिर उनके भी प्रत्येक के नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव, इस प्रकार गति की अपेक्षा चार-चार भेद किये गये हैं । बालमरण के वलयमरण ( वलन्मरण) यावत् गृधपृष्ठ मरण तक बारह भेद किये
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