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________________ २२५२ भगवती सूत्र-श. १३ उ. ७ मन और काया आत्मा है या अनात्मा ? के भी होती है और अजीवों के भी। १५ प्रश्न-हे भगवन् ! पहले काय होती है, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ? - १५ उत्तर-हे गौतम ! जीव का सम्बन्ध होने के पहले भी काया होती है, चीयमान (पुद्गलों का ग्रहण होते समय) भी काया होती और कायर्या-समय (पुद्गलों के ग्रहण का समय) व्यतीत हो जाने पर भी काया होती है। . १६ प्रश्न-हे भगवन् ! जीवों द्वारा ग्रहण करने के पहले काया का भेवन होता है, इत्यादि प्रश्न ? १६ उत्तर-हे गौतम ! पहले भी काया का भेदन होता है, यावत् (पुद्गलों के ग्रहण का समय बीत जाने पर) भी भेदन होता है। १७ प्रश्न-हे भगवन् ! काया (योग) कितने प्रकार की कही गई है ? १७ उत्तर-हे गौतम ! काया सात प्रकार की कही गई है। यथा१ औदारिक, २ औदारिक मिश्र, ३ वैक्रिय, ४ वैक्रिय मिश्र, ५ आहारक, ६ आहारक मिश्र और ७ कार्मण । विवेचन-मन सम्बन्धी सूत्रों का विवेचन भाषा सम्बन्धी सूत्रों के समान समझना चाहिए । मन शब्द का अर्थ इस प्रकार है-मन द्रव्य का जो समुदाय, मनन करने में उपकारी होता है और मन: पर्याप्ति नाम-कर्म के उदय से होता है, उसे 'मन' कहते हैं ? . काया के होने पर ही मन होता है, इसलिए अब काया का कथन किया जाता है। इस विषय में कोई शङ्का करता है कि-'काया आत्म स्वरूप ही है, क्योंकि काया द्वारा किये हुए कर्मों का अनुभव आत्मा को होता है । अथवा काया, आत्मा से सर्वथा भिन्न है, क्योंकि काया के एक अंश का छेदन होने.पर भी आत्मा का छेदन नहीं होता।' ___ इसका समाधान यह है कि काया कथंचित् आत्म-स्वरूप है, क्योंकि काया का स्पर्श करने पर आत्मा को भी अनुभव होता है । काया कथंचित् आत्मा से भिन्न भी है, क्योंकि काया का विनाश होने पर आत्मा का विनाश नहीं होता । यदि काया को आत्मा से सर्वथा अभिन्न माना जाय, तो काया का विनाश होने पर आत्मा का भी विनाश हो जायगा। परन्तु ऐसा नहीं होता। इसलिये काया, आत्मा से कचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न है। दूसरी अपेक्षा यह भी है कि कार्मण-काय की अपेक्षा आत्मा काया है, क्योंकि कार्मण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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