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________________ भगवती मूत्र-दा. १३ उ. ७ मन और काया आत्मा है. या अनात्मा ? २२५१ १७ उत्तर-गोयमा ! सत्तविहे काये पण्णत्ते, तं जहा-१ ओराले, २ ओरालियमीसए, ३ वेउविए, ४ वेउब्वियमीसए, ५ आहारए, ६ आहारगमीसए, ७ कम्मए। . कठिन शब्दार्थ-मणिज्जमाणे-मनन करते समय। भावार्थ-९ प्रश्न-हे भगवन् ! मन, आत्मा है या आत्मा से अन्य ? ९ उत्तर-हे गौतम ! मन आत्मा नहीं, आत्मा से अन्य है, इत्यादि जिस प्रकार भाषा के विषय में कहा, उसी प्रकार मन के विषय में भी, यावत् 'अजीवों के मन नहीं होता'-तक कहना चाहिये। १० प्रश्न-हे भगवन् ! मनन से पूर्व मन होता है, मनन के समय मन होता है या मनन-समय बीत जाने पर मन होता है ? १० उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार भाषा के सम्बन्ध में कहा, उसी प्रकार मन के विषय में भी कहना चाहिये। ११ प्रश्न-हे भगवन् ! मनन के पूर्व मन का भेदन होता है, मनन के समय मन का भेदन होता है या मनन-समय बीत जाने पर मन का भेदन होता है ? ११ उत्तर-हे गौतम ! भाषा सम्बन्धी कथन यहाँ भी कहना चाहिये। १२ प्रश्न-हे भगवन् ! मन कितने प्रकार का कहा गया है ? १२ उत्तर-हे गौतम ! मन चार प्रकार का कहा गया है । यथा१ सत्यमन, २ मृषामन, ३ सत्यमृषामन और ४ असत्यामृषामन ।। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! काय आत्मा है या आत्मा से अन्य ? १३ उत्तर-हे गौतम ! काय, आत्मा भी है और आत्मा से भिन्न भी। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! काय रूपी है या अरूपी ? १४ उत्तर-हे गौतम ! काय रूपी भी है और अरूपी भी। इसी प्रकार पूर्ववत् एक-एक प्रश्न करना चाहिये । (उत्तर) हे गौतम ! काय सचित्त भी है और अचित्त भी। काय जीव रूप भी है । और अजीव. रूप भी । काय जीवों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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