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भगवती सूत्र-श. १३ उ. ७ भाषा जीव या अजीव ?
विवेचन-सातवें उद्देशक में भाषा का वर्णन किया जाता है । भाषा जीव के द्वारा बोली जाती है और वह जीव के बन्ध और मोक्ष का कारण होती है । 'जीव का धर्म होने से भाषा भी ज्ञान के समान 'आत्मा' (जीव) कही जाती है, अथवा भाषा जीव स्वरूप नहीं होकर पुद्गल रूप है, क्योंकि भाषा श्रोत्रेन्द्रिय ग्राह्य होने से मूर्त है । अतएव जीव से भिन्न है।' इस शंका के कारण यह प्रश्न किया गया है कि 'भाषा आत्मा है ? या अन्य है'-इसका उत्तर दिया गया कि-'भाषा आत्म-स्वरूप नहीं, पुद्गल है । इसलिए भाषा आत्मा से अन्य है ।' आत्मा के द्वारा प्रेरित लोष्ठादि के समान भाषा अचेतन है।
पहले जो यह कहा गया कि 'भाषा जीव के द्वारा व्याप्त होती है, अत: भाषा भी ज्ञान के समान जीव होनी चाहिये'-इस कथन में दोष आता है। क्योंकि जीव मे अत्यन्त भिन्न चाकू आदि में भी जीव का व्यापार देखा जाता है।
भाषा रूपी है। वह श्रोत्र ग्राह्य है। तथाविध कान के आभूषण के समान भाषा द्वारा श्रोत्रेन्द्रिय का उपकार और उपघात होता है । अथवा 'क्या भाषा अरूपी है ?' क्योंकि धर्मास्तिकायादि के समानं वह चक्षुरिन्द्रिय से ग्राह्य नहीं होती ?' इस शंका से दूसरा प्रश्न किया गया है। इसका उत्तर दिया गया है कि 'भाषा रूपी है।' भाषा को अरूपी सिद्ध करने के लिये जो चक्षु-अग्राह्यत्व रूप हेतु दिया है, वह अनैकान्तिक (सदोष) है । परमाणु, वायु और पिशाचादि रूपी होते हुए भी चक्षु ग्राह्य नहीं होते।
भाषा सचित्त नहीं, वह जीव के द्वारा निसृष्ट पुद्गल समूह है । भाषा जीव (प्राण-धारण रूप) नहीं है, क्योंकि उनमें उच्छ्वासादि प्राणों का अभाव है।
कुछ लोक वेदभापा (चार वेदों की भाषा) को अपौरुपेयी मानते हैं। उनके मत के अभिप्राय को मन में रख कर यह प्रश्न किया गया है कि 'भाषा जीवों के होती है या अजीवों के' उत्तर दिया गया है कि भाषा जीवों के होती है । वर्गों का समूह 'भाषा' कहलाता है । वर्ण कण्ठ, तालु आदि के व्यापार, जीव से उत्पन्न होते हैं । कण्ठ, तालु आदि का व्यापार जीव में ही पाया जाता है। यद्यपि ढोल, मृदंग आदि अत्रीव वाजों से भी शब्द उत्पन्न होता है तथापि वह भापा रूप नहीं है। क्योंकि भाषा-पर्याप्ति से जनित शब्द को ही भाषा रूप से माना गया है।
'बोलने के पूर्व भाषा होती है या वोग्ते समय भाषा होती है अथवा बोलने के पीछे भापा होती है ?' इस प्रश्न का उत्तर दिया गया है कि-जिस प्रकार मिट्टी, पिण्ड अवस्था में घड़ा नहीं कहलाती, इसी प्रकार बोलने से पहले भाषा नहीं कहलाती। जिस
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