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भगवती मूत्र-स. १३७. मन और वाया आत्मा है या अनात्मा ?
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प्रकार घट अवस्था में वर्तमान ‘घट' कहलाता है, उसी प्रकार बोलते समय भाषा 'भाषा' कहलाती है। जिस प्रकार कपालावस्था (फूटे हुए घड़े के ठीकरे की अवस्था में) घट नहीं कहलाता, उसी प्रकार भाषा परिणाम का समय व्यतीत हो जाने पर अर्थात् बोलने के बाद भाषा नहीं कहलाती।
बोली जाती हुई भाषा का भेदन होता है । किन्तु बोलने के पहले और बोलने का समय व्यतीत हो जाने पर भाषा का भेदन होता है। इसका यह अभिप्राय है कि कोई मन्द प्रयत्न वाला वक्ता होता है, वह अपने मुख से अभिन्न गन्द-द्रव्यों को निकालता है । निकले हए उन शब्द-द्रव्यों के असंख्येय होने से तथा अति स्थल होने मे भेदन होता है । भिन्न होते हुए वे शब्द-द्रव्य संख्येय योजन जा कर शब्द-परिणाम का त्याग ही कर देते हैं। कोई वक्ता महा प्रयत्न वाला होता है । वह आदान-विसर्ग (ग्रहण करने और छोड़ने रूप दोनों)प्रयत्नों मे भिन्न करके ही शब्द-द्रव्यों को छोड़ता है । छोड़े हुए द्रव्य सूक्ष्म होने से और बहुत होने के अनन्त गुण वृद्धि से बढ़ते हुए छहों दिशाओं में लोकान्त तक पहुंच जाते हैं। जिस अवस्था में शब्द-परिणाम होता है, उममें 'भाष्यमाणता' ममझनी चाहिये । भाषा का समय व्यतीत हो जाने पर (जिस समय शब्द भाषा-परिणाम को छोड़ देता है, उस समय) भाषा का भेदन नहीं होता, क्योंकि उस समय भाषा का अभाव है ।
मन और काया आत्मा है या अनात्मा ?
९ प्रश्न-आया भंते ! मणे, अण्णे मणे ।
९ उत्तर-गोयमा ! णो आया मणे, अण्णे मणे । जहा भासा तहा मणे वि, जाव णो अजीवाणं मणे।
१० प्रश्न-पुट्विं भंते ! मणे, मणिजमाणे मणे ? १० उत्तर-एवं जहेव भासा । ११ प्रश्न-पुदि भंते ! मणे भिजह; मणिजमाणे मणे भिज्जइ,
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