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भगवती मूत्र-श. १३ ३.
आयन नरेश का संकल्प
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'अभीचि' नाम का कुमार था। वह सुकुनाल था । उसका वर्णन शिवभद्र के समान जानना चाहिये, यावत वह राज्य का निरीक्षण करता हुआ विचरता था। उदायन राजा का सगा भाणेज केशी' नामक कुमार था । वह भी सुकुमाल यावत् सुरूप था। उदायत राजा, सिन्धु सौवीर आदि मोलह देश, वीतिभय प्रमुख तीन सा त्रेसठ नगर और आकर का स्वामी था । उसकी अधीनता में-जिनको छत्र, चामर और बालव्यजन (पंखा) दिये गये है-ऐसे महालेन प्रमुख दस मुकुटबद्ध राजा और इमो प्रकार के दूसरे बहुत से राजा, यवराज, तलवर (कोतवाल) यावत् सार्थवाह आदि पर आधिपत्य करता और राज्य का पालन करता हुआ विचरता था । वह जीवाजीवादि तत्त्वों का जानकार श्रमणोपासक था।
विवेचन-सिन्ध नदी के पास जो जनपद विशेष है. वे सिन्धुनौवीर देश कहलाते हैं। अतिवृष्टि, अनावृष्टि तथा वेतो आदि के लिए हानिकारक चूहे. टिड्डी, पतंग आदि उपद्रव होन। 'ईति' कहलाता है। स्वचक्र भय (अपने राजा आदि अधिकारी से प्रजा को भय होना) और परचक्र भय (दूसरे राजादि में प्रजा को भय होना) भीति' कहलाता है । जहाँ 'ईति' और 'भाति' रूप भय नहीं हो, उसे वीतिभय' कहते हैं । उदायन राजा का नगर वीतिभय' था।
उदायन नरेश का संकल्प ५-तए णं से उदायणे राया अण्णया कयाइ जेणेव पोसह. साला तेणेव उवागच्छइ, जहा संखे जाव विहरइ । तए णं तस्स उदायणस्स रणो पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झस्थिप जाव समुप्पजित्था-'धण्णा णं ते गामा - गर • णयर • खेड- कव्वड - मडंव-दोणमुह-पट्टणा-सम-संवाहसण्णिवेसा. जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ, धण्णा णं ते
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