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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक
दुयासंजोगो जाव सत्तसंजोगो य जहा णवण्हं; णवरं एक्केक्को अब्भहिओ संचारेयव्वो, सेसं तं चेव । अपच्छिमआलावगो-अहवा चत्तारि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा।
कठिन शब्दार्थ-अपच्छिमआलावगो-अन्तिम आलापक ।
भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! दस नरयिक जीव, नरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं ?
२० उत्तर-हे गांगेय ! वे दस नरयिक जीव, रत्नप्रभा में होते हैं अथवा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं।
अथवा एक रत्नप्रभा में और नौ शर्कराप्रभा में होते हैं। इत्यादि द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्संयोगी और सप्तसंयोगी भंग जिस प्रकार नौ नरयिक जीवों के कहे गये हैं, उसी प्रकार दस नरयिक जीवों के विषय में भी जानना चाहिये। परन्तु विशेषता यह है कि एक एक नरयिक का अधिक संचार करना चाहिये । शेष सभी पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिये। उनका अन्तिम भंग इस प्रकार है-अथवा चार रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है।
विवेचन-दस नैरयिक जीवों के असंयोगी सात भंग होते हैं।
दस नैरयिक जीवों के १-९ इत्यादि द्विकसंयोगी एक विकल्प के ९ भंग होते हैं । उनके द्वारा सात नरकों के पूर्वोक्त द्विकसंयोगी इक्कीस विकल्पों के साथ गुणा करने से १८९ भंग होते हैं।
दस नैरयिक जीवों के १-१-८ इत्यादि त्रिकसंयोगी एक विकल्प के ३६ भंग होते है। उनके द्वारा सात नरकों के पूर्वोक्त त्रिकसंयोगी पैंतीस विकल्पों के साथ गुणा करने से १२६० भंग होते हैं।
दस नैरयिक जीवों के १-१-१-७ इत्यादि चतुःसंयोगी एक विकल्प के ८४ भंग होते
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