________________
१६५२
भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक
१९ प्रश्न-णव भंते ! णेरड्या गैरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा किं० पुच्छ।
१९ उत्तर-गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा; जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा। अहवा एगे रयणप्पभाए अट्ठ सक्करप्पभाए होज्जा । एवं दुयासंजोगो, जाव सत्तगसंजोगो य जहा अट्टण्ही भणियं तहा णवण्हं पि भाणियव्वं; णवरं एक्केक्को अन्भहिओ संचारेयव्वो, सेसं तं चेव । पच्छिमो आलावगो-अहवा तिण्णि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहे. सत्तमाए होजा।
कठिन शब्दार्थ-पच्छिमो-पीछे का, बाद का (अंत का) आलावगो-आलापक ।
भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! नौ नरयिक जीव, नरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न ।
१९ उत्तर-हे गांगेय ! वे नौ नरयिक जीव, रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं।
अथवा एक रत्नप्रभा में और आठ शर्कराप्रमा में होते हैं। इत्यादि जिस प्रकार आठ नरयिकों के द्विक-संयोगी, त्रिक-संयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्संयोगी और सप्तसंयोगी भंग कहे, उसी प्रकार नौ नरयिकों के विषय में भी कहना चाहिये । परन्तु विशेषता यह है कि एक-एक नरयिक का अधिक संचार करना चाहिये । शेष सभी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिये । अन्तिम भंग इस प्रकार है-अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रमा में, एक बालकाप्रमा में यावत् एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org