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________________ भगवती मूत्र-ग. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेगनक १६५१ इतनी विशेषता है कि एक एक नरयिक का अधिक संचार करना चाहिये । शेष सभी छह संयोगी तक पूर्वोक्त प्रकार से कहना चाहिये । अन्तिम भंग यह हैअथवा तीन शर्कराप्रभा में, एक वालुकाप्रभा में यावत् एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है । (१) अथवा एक रत्नप्रभा में यावत् एक तमःप्रभा में और दो अध:सप्तम पृथ्वी में होते हैं (२) अथवा एक रत्नप्रभा में यावत् दो तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है। इसी प्रकार सभी स्थानों पर संचार करना चाहिये । अथवा यावत् दो रत्नप्रमा में, एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है। विवेचन-आठ नैरयिकों के अमयोगी ७ भंग होते हैं । द्विकसंयोगी एक विकला के सात भंग होते हैं । उनके द्वारा पूर्वोक्त सात नरकों के द्विकसंयोगी इक्कीस विकल्पों को गुणा करने से १४७ भंग होते हैं । - आठ नैरयिकों के १-१-६ इत्यादि त्रिकसंयोगी एक विकल्प के इक्कीस भंग होते हैं । उनके द्वारा पूर्वोक्त मात नरकों के त्रिकसंयोगी पतीस विकल्पों के साथ गुणा करने से ७३५ भंग होते हैं। आठ नैरयिकों के १-१-१-५ इत्यादि चतु:संयोगी एक विकल्प के पंतीस भंग होते हैं । उनके द्वारा पूर्वोक्त सात नरकों के चतुःसंयोगी पैंतीस विकल्पों को गुणा करने से १२२५ भंग होते हैं। आठ नैरयिकों के १-१-१-१-४ इत्यादि पंचसंयोगी एक विकल्प के पैतीस भंग होते हैं। उनके द्वारा पूर्वोक्त मान नरकों के पंचसंयोगी इक्कीस विकल्पों को गुणा करने से ७३५ भंग. होते हैं। आठ नैरयिकों के १-१-१-१-१-३ इत्यादि पद्मयोगी एक विकल्प के इक्कीस भंग होते हैं । उनके द्वारा पूर्वोक्त सात नरकों के पसंयोगी सात विकल्पों को गुणा करने से १४७ भंग होते हैं। आठ नैरयिकों के मात संयोगी १-१-१-१-१-१-२ इत्यादि एक विकल्प के ७ भंग होते हैं । इस प्रकार आठ नैरयिकों के कुल ३००३ (+१४७+७३५+१२२५+७३५+१४७+ ७:३००३) भंग होते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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