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________________ १६५० भगवती सूत्र - श. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न - प्रवेशनक ८ Jain Education International १८ प्रश्न - अटु भंते ! णेरड्या णेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा ० पुच्छा । १८ उत्तर - गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा, जाव असत्तमाए `वा होना | अहवा एगे रयणप्पभाए सत्त सकरप्पभाए होना । एवं दुयासंजोगो, जाव छक्कसंजोगो य जहा सत्तहं भणिओ तहा अट्ठण्ह वि भाणियव्वो, णवरं एक्केक्को अन्महिओ संचारेयव्वो, सेसं तं चैव जाव छक्कसंजोगस्स | अहवा तिष्णि सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए जाव एगे असत्तमाए होज्जा; अहवा एगे रयणप्पभाए जाव एगे तमाए दो असत्तमाए होज्जा; अहवा एगे रयणप्पभाए जाव दो तमाए एगे अहेसत्तमाए होजा । एवं संचारेयव्वं; जाव अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए जाव एगे असत्तमाए होज्जा । भावार्थ- - १८ प्रश्न हे भगवन् ! आठ नैरयिक जीव, नरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न । १८ उत्तर - हे गांगेय ! रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधः सप्तम पृथ्वी में होते हैं । अथवा एक रत्नप्रभा में और सात शर्कराप्रमा में होते हैं । जिस प्रकार सात नेरयिकों के द्विक-संयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी और षट्संयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार आठ नैरयिकों के भी कहना चाहिये । परन्तु For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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