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"भगवती सूत्र-य. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक
१६४९ -
जिस प्रकार छह नै रयिक जीवों के द्विक-संयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार सात नैरयिकों के भी जानने चाहिये, परन्तु इतनी विशेषता है कि यहां एक नरयिक का अधिक संचार करना चाहिये । शेष सभी पूर्ववत् जानना चाहिये। जिस प्रकार छह नैरयिक जीवों के त्रिक संयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी और षट्संयोगी भंग कहे, उसी प्रकार सात नैरयिकों के विषय में भी जानना चाहिये, परन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ एक एक नै रयिक जीव का अधिक संचार करना चाहिये । यावत् षट्संयोगी का अन्तिम भंग इस प्रकार कहना चाहिये । अथवा दो शर्कराप्रभा में, एक वालकाप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है। यहां तक जानना चाहिये । (सात संयोगो एक भंग ।) अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तम पृथ्वी में होता है।
विवेचन-सात नैरयिकों के द्विक संयोगी एक विकल्प के छह भंग होते हैं । यथा१-६ । २-५ । ३-४ । ४-३ । ५-२ । ६-१ । इन छह भंगों द्वारा पूर्वोक्त सात नरकों के द्विकसंयोगी २१ विकल्पों को गुणा करने से सात नैरयिक सम्बन्धी द्विकसंयोगी १२६ भंग होते हैं।
सात नैरयिकों के त्रिक संयोगी एक विकल्प के १५ भंग होते हैं । यथा-१-१-५ । १-२-४ । २-१-४ । १-३-३ । २-२-३ । ३-१-३। १-४-२ । २-३-२ । ३-२-२. । ४-१-२ । १-५-१ । २-४-१ । ३-३-१। ४-२-१। ५-१-१। इन पन्द्रह भंगों द्वारा पूर्वोक्त त्रिकसंयोगी पैतीस विकल्पों को गुणा करने से ५२५ भंग होते हैं। . ..
सात नैरयिकों के चतुस्संयोगी-१-१-१-४ इत्यादि एक विकल्प के बीस भंग होते हैं। इनके द्वारा पूर्वोक्त चतुःसंयोगी पैतीस विकल्पों को गुणा करने से ७०० भंग होते हैं।
सात नरयिकों के पंचसंयोगी १-१-१-१-३ । इत्यादि एक विकल्प के १५ भंग होते हैं। उनके द्वारा पूर्वोक्त पंचसंयोगी इक्कीस विकल्पों को गुणा करने से ३१५ भंग होते हैं।
सात नैरयिकों के षट्संयोगी १-१-१-१-१-२। इत्यादि एक विकल्प के छह भंग होते हैं। उनके द्वारा पूर्वोक्त छह संयोगी सात विकल्पों को गुणा करने से बयालीस भंग होते है।
सात संयोगी एक विकल्प और एक ही भंग होता है। इस प्रकार (७+१२६+५२५+ ७००+३१५+४२+१=१७१६) कुल मिलाकर सात नैरयिकों के १७१६ भंग होते हैं ।
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