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भगवती-श. ९ उ. ३२ गांगेय प्रश्न-प्रवेशनक
संयोगी १०५ त्रिक-संयोगी ३५०, चतुःसंयोगी ३५०, पंचसंयोगी १०५ और छह संयोगी । ये सभी मिलकर ९२४ भंग होते हैं ।
. १७ प्रश्न-सत्त भंते ! णेरइया णेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा० पुच्छा।
१७ उत्तर-गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा, जाव अहेसत्तमाए वा होजा। अहवा एगे रयणप्पभाए छ सकरप्पभाए होजा। एवं एएणं कमेणं जहा छण्हं दुयासंजोंगो तहा सत्तण्ह वि भाणियवं; प्रवरं एगो अभहिओ संचारिजइ, सेसं तं चेव । तिया. संजोमो, चउक्कसंजोगो, पंचसंजोगो, छक्कसंजोगो य छण्हं जहा तहा सत्तण्ह वि भाणियव्वं, णवरं एक्केको अन्भहिओ संचारे. यम्बो, जाव छक्गसंजोगो। अहवा दो सकरप्पभाए एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होजा। अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होजा।
कठिन शब्दार्थ--दुयासंजोगो-द्विक-संयोग।
भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! सात नैरयिक जीव, नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न ।
. .१७ उत्तर-हें गांगेय ! वे सातों नरयिक रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं-ये असंयोगी सात विकल्प होते हैं।
अथवा एक रत्नप्रभा में और छह शर्कराप्रभा में होते हैं । इस क्रम से
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