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भगवती सूत्र - १ ३२ गांगेय प्रश्न - प्रवेशनक
भाए होज्जा; एवं जाव अहवा तिष्णि रयणप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होना | अहवा एगे सक्करप्पभाए तिष्णि वालुयपभाए होज्जा एवं जहेब रयणप्पभाए उवरिमाहिं समं चारियं तहा सबक रप्पभाए वि उवरिमाहिं समं चारेयव्वं; एवं एक्केक्काए समं चारेयव्वं, जाव अहवा तिष्णि तमाए एगे असत्तमाए होज्जा ६३ ।
कठिन शब्दार्थ - पविसमाणा- प्रवेश करते हुए ।
भावार्थ - १४ प्रश्न - हे भगवन् ! नरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए चार नैरयिक जीव रत्नप्रभा में उत्पन्न होते है, इत्यादि प्रश्न ।
१४ उत्तर- हे गांगेय ! वे चार जीत्र, रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधः सप्तम पृथ्वी में होते हैं । ( इस प्रकार असंयोगी सात विकल्प और सात ही भंग होते हैं 1 )
( द्विक संयोगी त्रेसठ भंग ) - ) - अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा होते हैं । अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार अथवा यावत् एक रत्नप्रभा में और तीन अधः सप्तम पृथ्वी में होते हैं । ( इस प्रकार १-३ के छह भंग हुए) अथवा दो रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में होते है । इस प्रकार अथवा यावत् दो रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तम पृथ्वी में होते हैं । ( इस प्रकार २-२ के छह भंग होते हैं ।) अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है । इस प्रकार अथवा यावत् तीन रत्नप्रभा में और एक अधः सप्तम पृथ्वी में होता है । ( इस प्रकार ३-१ के छह भंग होते हैं । इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ अठारह भंग होते हैं ।) अथवा एक शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में होते है । जिस प्रकार रत्नप्रभा का आगे की नरकों के साथ संचार (योग) किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभा का भी उसके आगे की नरकों के साथ संचार करना चाहिये । इस प्रकार एक एक नरक के साथ योग करना चाहिये अथवा यावत् तीन तमःप्रभा में और एक अधः सप्तम
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