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________________ भगवती सूत्र - ९ उ. ३१ सोच्चा केवली ५० प्रश्न - हे भगवन् ! उनके शिष्य भी सिद्ध होते हैं, यावत् सभी दुःखों का अन्त करते हैं ? ५० उत्तर - हां, गौतम ! सिद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । १६१३ ५१ प्रश्न - हे भगवन् ! उनके प्रशिष्य भी सिद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं ? ५१ उत्तर - हाँ, गौतम ! सिद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । होते हैं ५२ प्रश्न - -हे भगवन् ! वे 'सोच्चा केवली' ऊर्ध्वलोक इत्यादि प्रश्न ? ५२ उत्तर - हे गौतम! 'असोच्चा' केवली के विषय में कहे अनुसार जानना चाहिये यावत् 'वे ढ़ाई द्वीप समुद्र के एक भाग में होते हैं'-वहाँ तक कहना चाहिये । ५३ प्रश्न - हे भगवन् ! वे सोच्चा केबली एक समय में कितने होते है ? ५३ उत्तर - हे गौतम ! वे एक समय में जघन्य एक, दो, या तीन होते हैं और उत्कृष्ट एक सौ आठ होते हैं । इसलिये हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि 'केवली यावत् केवलिपाक्षिक की उपासिका से धर्म-प्रतिपादक वचन सुनकर यावत् कोई जीव केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न करता है और कोई उत्पन्न नहीं करता । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैऐसा कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं । विवेचन-- जिस प्रकार केवली आदि के पास धर्म सुने बिना ही जीव को सम्यग् बोध से लेकर यावत् केवलज्ञान होता है, उसी प्रकार धर्म का श्रवण करने वाले जीव को भी सम्यग् बोध से लेकर यावत् केवलज्ञान उत्पन्न होता है । यही बात उपर्युक्त सभी प्रकरण में बतलाई गई है । तेले-तेले की विकट तपस्या करने वाले साधु को अवधिज्ञान उत्पन्न होता है और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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