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भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३१ सोच्चा केवली
कठिन शब्दार्थ-सिस्सा-शिष्य, पसिस्सा–प्रशिष्य (शिष्यों के शिष्य), अट्ठसयंएक सौ आठ।
भावार्थ-४४ प्रश्न-हे भगवन् ! उस अवधिज्ञानी के कितने अध्यवसाय होते हैं ?
४४ उत्तर-हे गौतम ! उसके असंख्यात अध्यवसाय होते हैं । 'असोच्चा केवली' में कहे अनुसार यावत् 'उसे केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न होता है। वहाँ तक कहना चाहिये।
__ ५४ प्रश्न-हे भगवन् ! वे 'सोच्चा केवली' केवली-प्ररूपित धर्म कहते हैं, जतलाते हैं, प्ररूपित करते हैं ?
४५ उत्तर-हाँ, गौतम ! वे केवलीप्ररूपित धर्म कहते हैं, जैतलाते हैं और प्ररूपित करते हैं।
४६ प्रश्न--हे भगवन् ! वे किसी को प्रवृजित करते हैं, मुण्डित करते हैं?
४६ उत्तर-हां, गौतम ! वे प्रवजित करते हैं, मण्डित करते हैं।
४७ प्रश्न-हे भगवन् ! उन सोच्चा केवली के शिष्य भी किसी को प्रबजित करते हैं, मुण्डित करते हैं ?
४७ उत्तर-हां, गौतम ! उनके शिष्य भी प्रवजित करते हैं, मुण्डित करते हैं।
४८ प्रश्न-हे भगवन् ! उन सोच्चा केवली के प्रशिष्य भी प्रवजित करते हैं, मुण्डित करते हैं ?
४८ उत्तर-हां, गौतम ! उनके प्रशिष्य भी प्रवजित करते हैं, मुण्डित करते हैं।
४९ प्रश्न-हे भगवन् ! वे सोच्चा केवली सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं ?
४९ उत्तर-हां, गौतम ! वे सिद्ध होते है, बुद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं।
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